Friday, February 22, 2013

एक अधूरी कविता ..........

बहुत दिनों से कोई कविता नहीं लिखी, 
आज सुबह से ही सोच रहा था , 
आज किसी न किसी विषय पर कविता लिखूंगा , 
सुबह घर से चला तो सोचा , 
ऑफिस पहुचने से पहले कोई न कोई विषय पर ध्यान केन्द्रित कर ही लूँगा , 
बस में चल दिया और अगले एक घंटे  में दिमाग को खूब दौड़ाया , 
किसी विषय पर तो अपने शब्दों का जाल से बुनू 
किसी एक विषय में दो चार पंकित्यो  से आगे नहीं सोच पा रहा था,  
घर परिवार से दुनियादारी तक ,  अपने देश से लेकर दुनिया तक, 
कल्पनाओ से लेकर यथार्थ तक , 
चाँद तारो से लेकर सागर के तल तक , 
सब सोच रहा था, 
ऑफिस पंहुचा तो ऐसा उलझा  की , 
अपनी ज़िन्दगी ही कविता लग रही थी , 
सोचा अभी थोडा काम निपटा लेता हूँ , 
अब लौटते हुए दिमाग लगाऊंगा , 
लेकिन लौटते हुए दिमाग की हालत ऐसी हो गयी थी, 
बस में जाते ही सो गया , 
मेरे घर के स्टैंड पर कंडक्टर ने आवाज देकर उतारा था, 
घर पहुच कर टीवी और बीवी बच्चो की दुनिया में खो गया , 
खाना खाया और कुछ इधर उधर की बाते की , 
रजाई तान के सो गया . 
एक कविता रचने की जो सुबह से सोच रहा था , 
अब शायद मेरे सोने के बाद , 
मेरे खर्राठे से रोशन हो रही थी।