Saturday, August 17, 2013

मेरा देश , मेरा गर्व

क्यों न गर्व करू मैं  अपने देश पर ,
मेरा देश मेरा गौरव हैं ,
इसकी मिटटी से ही तो बना हूँ मैं ,
इसी धरती पर तो रहता हूँ मैं ,
इसकी हवा से सांसे चलती हैं मेरी ,
इसी की मिटटी से उपजा अन्न खाता हूँ मैं ,

माना की समस्याये बहुत हैं मगर ,
इसी की आजाद धरती पर बेपरवाह घूमता हूँ मैं,
ये बुरा हैं , ये अच्छा हैं कहने की ताकत तो रखता हूँ मैं ,
कभी अपनी सरकार को , कभी अपने सिस्टम को ,
कोसने का अधिकार तो रखता हूँ मैं ,

जो हैं  , जैसा चल रहा हैं उसका सीधा भागीदार हूँ मैं,
सरकार भी चुनता हूँ मैं ,
सिस्टम भी बनाता बिगाड़ता हूँ मैं ,
अपने हित के लिए प्रक्रति से खिलवाड़ भी करता हूँ मैं ,
अन्याय का विरोध भी पुरजोर आवाज से नहीं करता मैं ,

फिर मैं देश पर गर्व क्यों न करू ,
इतना कुछ होने के बाद इसी की आगोश में बेफिक्री की नींद सोता हूँ मैं ,
इसी की रोटी , इसी का पानी , इसी की हवा  में जीता हूँ मैं ,
फिर देश को बुरा क्यों कहूँ मैं ,
गर्व करने के हजारो कारण हैं मेरे पास ,
न करने के कुछ गिने चुने ,
मेरा देश तो सबसे महान हैं ,
सारी दुनिया का ताज हैं .........

Monday, August 5, 2013

अजीब कशमकश .....

मै अपनी  बिटिया के साथ जा रहा था
रास्ते में एक भिखारी मिला
वो  मुझसे  कुछ   रुपये मांग रहा था
मै  कई जगह ऐसे भिखारियों से टकराता  हूँ
उसको "  बाबा हमें माफ़  करो , आगे बढ़ो
कहता हुआ निकला  जा रहा था
चंद  कदम आगे भी बढ़ा था,
मेरी चार साल की बिटिया ने  मुझे पीछे खीचा और कहा ,
" पापा ,  आपने उन बूढ़े अंकल को पैसे  क्यूँ  नहीं दिए
वो अपने खाने के  लिए ही तो   पैसे मांग रहे थे
 उनके  पास पैसे नहीं होंगे , आप दे देते
चलो , उनको कुछ  पैसे दो
मैंने कहा ," बेटा , मेरे पास पैसे नहीं हैं
तो वह तपाक से बोली, " पापा, झूठ नहीं बोलते , आपके पर्स में पैसे तो हैं
मैंने कहा , " बेटे , पैसे तो हैं मगर खुले पैसे नहीं हैं बाबा को देने के लिये
तो वह बोली ," तो खुले करवा लो फिर दे दो
मैं उसको अनसुना करके आगे बढ़ना लगा,
वो रोने लगी , " पापा , आपने अंकल को पैसे क्यूँ नहीं दिए
अब वो क्या खायेंगे , कहाँ जायेंगे ?"
मैंने बिटिया की आँखों से बहता पानी देखा और 
पर्स निकाल कर दस रुपये का नोट निकाल कर बाबा को आवाज देकर बुलाया ,
बाबा को पैसे देकर थोडा आगे बढ़ा  तो बिटिया को फिर से बढ़ा खुश पाया
अब वो उस घटना को भूल चुकी थी
मगर मेरे सामने सबको और इंसानियत के कई सवाल छोड़ गयी थी , 
मैंने उसे गोद में उठाया और इधर उधर की बातो में फंसाया
वो भोला सा मन फिर से चहकने लगा
और मै घबरा रहा था अब कही और कोई मांगने वाला मिल जाये

जिससे मेरी बेटी फिर मेरे पीछे पड़ जाये