Thursday, July 22, 2021

मानसून

 

मानसून का इन्तजार सिर्फ हम ,

या धरा ही नहीं करते ,

हमारे घर के दरवाजे , खिड़कियाँ ,

भी बेसब्री से निहारती है आकाश को ,

बादलो के कड़कने से ,

उन्हें भी उम्मीद जगती है ,

वो भी तर होना चाहते है ,

बारिश के पानी से ,

जैसे वो पहले पेड़ रूप में ,

भिगोते थे खुद को ,

और फिर जड़ो से कैसे ,

भेजते थे तने से ,

पानी सारे पेड़ को ,

उसकी कोमल शाखों और ,

पत्तो तक , हरा भरा , निखरा

जैसे शृंगार कर उठता था ,

अब भले ही हमने उसे ,

काटकर बना लिए हो ,

अपने दरवाजे , चौखट ,

मगर अब भी वह तरसता है ,

बारिश के पानी को ,

खूब पीता है ,

मानसून ढलने पर ,

वह ख़ुशी से फूल  जाता है ,

इतरा कर थोड़ा टेड़ा हो जाता है,

खुद को तैयार करता है फिर ,

ठिठुरता है जाड़ो में ,

निष्ठुर गर्मियाँ सोख लेती है,

घाव दे जाती है हजार ,

अगली बारिश का इन्तजार ,

उसको भी होता है,

फिर मानसून का इन्तजार ,

उसको भी बेसब्री से होता है।