Monday, April 11, 2022

सच

 

मुझे "सच " लिखने में डर लगता है ,

क्यूँकि "सच" चीथड़े कर देता है झूठ के ,

नकाब हटा देता है चेहरों से ,

खोल देता है परत दर परत झूठ की ,

और सब " उजाला " कर देता हैं ,

लेकिन इस उजाले को देखने की ,

ताकत किसमे बची है अब ,

हमें तो अब झूठ में जीने में ,

मजा आने लगा है और ,

वही सच लगने लगा है ,

जो भी लिखना चाहता है "सच",

उसकी बातों पर किसको अब विश्वास है ,

न जाने क्यों फिर भी कुछ सिरफिरे ,

सच की तलाश में भटकते है ,

और फिर एक दिन गुमनाम ,

जीवन जीने को मजबूर होते हैं,

पता सबको हैं , अंत में " सच "

एक न एक दिन उभर ही आयेगा ,

अँधियारे को मात देकर ,

झक "उजाला " कर जायेगा ,

मगर इस अंतराल में ,

"झूठ " अपनी बाजी जीत जायेगा।