Monday, October 16, 2023

मन के मोती - भाग २

 

मन के मँजीरें बजे कैसे अब ,  कृत्रिम सब जग हुआ जाय। 

कृत्रिम हुआ जब जग सारा , वो भाव फिर कहाँ से आय।१। 

 

धीरज खोया , विश्वास खोया , खो दिये सब संस्कार।

मूल बदल गये समाज के ,  टिके कैसे अब संसार। २।

 

बीत रही ज़िन्दगी , समेटने सुःख के सब साज। 

मृगतृष्णा सी प्यास बड़ी , दुःख के सब काज। ३।

 

बड़े -बुढ़न की बात अब कहाँ किसके कान सुहाय। 

देख रहे इक कोने से अब किसको मर्म समझाय ।४।

 

उन्नति -उन्नति सब कहे , सब  चमकदार हो जाय।

राख बिछी है जो तल पर , वो किसके हिस्से आय। ५।

 

Thursday, October 12, 2023

मन के मोती - भाग -१

 

गूगल भये सबसे बड़े गुरु , फेसबुक बिछुड़े मिलाय। 

घोर सच है अब , अंतरजाल पटल बिन रहा न जाय ।१।

 

लद गए जमाने धीरज के, अब न धैर्य-संयम बरता जाय। 

एक क्लिक पर दुनिया सामने , जो चाहे वो हो जाय।२।

 

बदल गयी है दुनिया , बदल गए है सब लोक । 

बदले नहीं जो अब भी , "पागल " कहते लोग। ३।

 

दौड़ लगी बड़ी भयंकर , कोई कैसे क्यों पीछे छूट जाय।

साम -दंड -भेद सब , पाप -पुण्य चिंता किसको सताय। ४।  

 


कह विधान नौकरी का -" हाँ जी " की नौकरी , "ना जी " का घर।
करता कोई काम मेहनत-लगन से, लेकिन चाटुकारों की जय -जय।५।

 

Tuesday, October 10, 2023

विश्वास

 

मैं सूक्ष्तम रूप तेरे जगत का ,

तुम गोचर -अगोचर जगत के ,

तुम ब्रह्माण्ड के कण -कण बसे,

मैं धूल का इक कण जैसे। 

 

मैं भेड़ सा चरता तेरे उपवन में ,

तुम चरवाहे मेरे ,मर्जी हाँके ,

तेरी ओट में रहता हरदम ,

तेरी मर्ज़ी - सुःख -दुःख कटे। 

 

जो समय दिया,जितना दिया तूने ,

नियति बाँधी है मेरे गले ,

न कोई गिला,न कोई शिकवा ,

मेरे हिस्से ही कर्मफल मेरे। 

 

बस इतनी सी विनती प्रभु ,

जो भी आये मेरे हिस्से ,

शीश नवा शिरोधार्य करुँ ,

विश्वास तुझपर कभी न टूटे। 

 

Saturday, October 7, 2023

श्रीराम वंशावली गाथा

ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि हुए ,

मरीचि फिर कश्यप जने ,

कश्यप के सुत विवस्वान हुए ,

विवस्वान से प्रतापी वैवस्वत मनु हुए। 

 

मनु के कुल में इक्ष्वाकु जन्मे ,

कुक्षि -विकुक्षि से बाण हुए ,

बाण पुत्र अनरण्य चले ,

अनरण्य से महाराज पृथु जन्मे। 

 

पृथु वंश फिर त्रिशंकु बढ़ाये ,

त्रिशंकु से धुन्धुमार हुए ,

धुन्धुमार से युवनाश्व बढ़े ,

युवनाश्व से महान मान्धाता जने। 

 

मान्धाता का तेज सुसन्धि में आया ,

सुसन्धि से ध्रुवसन्धि में तेज बढ़े ,

भरत , ध्रुवसन्धि पुत्र कहलाये ,

इक्ष्वाकु कुल का मान बढ़ाये। 

 

भरत , असित को राजकाज सौंपे ,

असित के पुत्र सगर कहलाये ,

सगरपुत्र असमञ्ज साकेत संभाली ,

असमञ्ज फिर अंशुमान तात कहलाये। 

 

दिलीप जन्मे फिर भरत कुल में ,

महान भगीरथ  पुत्र रूप में पाए,

भगीरथ से ककुत्स्थ जन्मे ,

फिर रघु जैसा प्रतापी राजा पाये। 

 

रघुकुल की हुई बहुत बड़ाई ,  

प्रवृद्ध, शंखण, सुदर्शन,अग्निवर्ण

शीघ्रग , मरु, प्रशुश्रुक ,अम्बरीश,

सब रघुकुल तिलक कहलाये। 

 

अम्बरीश के कुल में नहुष हुए ,

नहुष कुलदीपक ययाति बने ,

ययाति से नाभाग जन्मे ,

नाभाग से शूरवीर अज हुए। 

 

अज के घर फिर दशरथ जन्मे ,

अयोध्या में राज -काज फले ,

दशरथ के भाग्य में पुत्ररूप में ,

नारायण स्वयं " राम " बने। 

 

धन्य है भाग्य अयोध्या के ,

साकेत नगरी खुद साक्ष्य बने ,

कण -कण राममय जिस भूमि का ,

वो " अयोध्या जी महाराज " कहलाये।