Monday, October 16, 2023

मन के मोती - भाग २

 

मन के मँजीरें बजे कैसे अब ,  कृत्रिम सब जग हुआ जाय। 

कृत्रिम हुआ जब जग सारा , वो भाव फिर कहाँ से आय।१। 

 

धीरज खोया , विश्वास खोया , खो दिये सब संस्कार।

मूल बदल गये समाज के ,  टिके कैसे अब संसार। २।

 

बीत रही ज़िन्दगी , समेटने सुःख के सब साज। 

मृगतृष्णा सी प्यास बड़ी , दुःख के सब काज। ३।

 

बड़े -बुढ़न की बात अब कहाँ किसके कान सुहाय। 

देख रहे इक कोने से अब किसको मर्म समझाय ।४।

 

उन्नति -उन्नति सब कहे , सब  चमकदार हो जाय।

राख बिछी है जो तल पर , वो किसके हिस्से आय। ५।

 

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