मन के मँजीरें बजे कैसे अब , कृत्रिम
सब जग हुआ जाय।
कृत्रिम हुआ जब जग सारा , वो भाव फिर कहाँ से आय।१।
धीरज खोया , विश्वास खोया , खो दिये सब संस्कार।
मूल बदल गये समाज के , टिके कैसे अब
संसार। २।
बीत रही ज़िन्दगी , समेटने सुःख के सब साज।
मृगतृष्णा सी प्यास बड़ी , दुःख के सब काज। ३।
बड़े -बुढ़न की बात अब कहाँ किसके कान सुहाय।
देख रहे इक कोने से अब किसको मर्म समझाय ।४।
उन्नति -उन्नति सब कहे , सब चमकदार
हो जाय।
राख बिछी है जो तल पर , वो किसके हिस्से आय। ५।
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