मैं सूक्ष्तम रूप तेरे जगत का ,
तुम गोचर -अगोचर जगत के ,
तुम ब्रह्माण्ड के कण -कण बसे,
मैं धूल का इक कण जैसे।
मैं भेड़ सा चरता तेरे उपवन में ,
तुम चरवाहे मेरे ,मर्जी हाँके ,
तेरी ओट में रहता हरदम ,
तेरी मर्ज़ी - सुःख -दुःख कटे।
जो समय दिया,जितना दिया तूने ,
नियति बाँधी है मेरे गले ,
न कोई गिला,न कोई शिकवा ,
मेरे हिस्से ही कर्मफल मेरे।
बस इतनी सी विनती प्रभु ,
जो भी आये मेरे हिस्से ,
शीश नवा शिरोधार्य करुँ ,
विश्वास तुझपर कभी न टूटे।
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