ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि हुए ,
मरीचि फिर कश्यप जने ,
कश्यप के सुत विवस्वान हुए ,
विवस्वान से प्रतापी वैवस्वत मनु हुए।
मनु के कुल में इक्ष्वाकु जन्मे ,
कुक्षि -विकुक्षि से बाण हुए ,
बाण पुत्र अनरण्य चले ,
अनरण्य से महाराज पृथु जन्मे।
पृथु वंश फिर त्रिशंकु बढ़ाये ,
त्रिशंकु से धुन्धुमार हुए ,
धुन्धुमार से युवनाश्व बढ़े ,
युवनाश्व से महान मान्धाता जने।
मान्धाता का तेज सुसन्धि में आया ,
सुसन्धि से ध्रुवसन्धि में तेज बढ़े ,
भरत , ध्रुवसन्धि पुत्र कहलाये ,
इक्ष्वाकु कुल का मान बढ़ाये।
भरत , असित को राजकाज सौंपे ,
असित के पुत्र सगर कहलाये ,
सगरपुत्र असमञ्ज साकेत संभाली ,
असमञ्ज फिर अंशुमान तात कहलाये।
दिलीप जन्मे फिर भरत कुल में ,
महान भगीरथ पुत्र रूप में पाए,
भगीरथ से ककुत्स्थ जन्मे ,
फिर रघु जैसा प्रतापी राजा पाये।
रघुकुल की हुई बहुत बड़ाई ,
प्रवृद्ध, शंखण, सुदर्शन,अग्निवर्ण
शीघ्रग , मरु, प्रशुश्रुक ,अम्बरीश,
सब रघुकुल तिलक कहलाये।
अम्बरीश के कुल में नहुष हुए ,
नहुष कुलदीपक ययाति बने ,
ययाति से नाभाग जन्मे ,
नाभाग से शूरवीर अज हुए।
अज के घर फिर दशरथ जन्मे ,
अयोध्या में राज -काज फले ,
दशरथ के भाग्य में पुत्ररूप में ,
नारायण स्वयं " राम " बने।
धन्य है भाग्य अयोध्या के ,
साकेत नगरी खुद साक्ष्य बने ,
कण -कण राममय जिस भूमि का ,
वो " अयोध्या जी महाराज " कहलाये।
Very good
ReplyDeleteJai shree ram ji 🙏
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