बहुत खूबसूरत दिखते है
ये शहर ,
आसमां से बातें करती
इमारतें ,
चौड़ी सड़कों पर सरपट भागती
,
लम्बी - चौड़ी , चमाचम
गाड़ियाँ,
खिलते मुस्कराते बाज़ार
गुलजार ,
लोगों के झुण्ड ही झुण्ड
,
सब अपने आप में व्यस्त
,
सजावट करीने की, फैशन
हजार ।
एक मेरे गाँव का बाजार
,
मिलकर दूकान बस चार
,
फुरसत ही फुर्सत सबको
,
पूछ लेते है पूरा हाल
समाचार ,
न भी हो पल्ले में ,
कल दे देना ,
सामान बैग में ठूँस देते
है दूकानदार ,
चाय की एक छोटी सी टपरी
पर ,
चार लोग ही नाप डालते
है सारा संसार।
अच्छा शहर भी है , गाँव
भी सुन्दर,
न एक दूसरे से कमतर
, न बेहतर ,
किसी को सुकूं गाँव में
,
किसी का सपना है शहर
,
दौड़ना सब जगह ही है पेट
खातिर ,
अंतर बस इतना है ,
शहर चाहता है अब गाँव
सा सुकून ,
और गाँव हो जाना चाहता
है शहर।
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