Wednesday, April 19, 2023

नियम

 

प्रकृति का अपना नियम है संतुलन का ,

उसके लिये कोई अमीर -गरीब होता है क्या ?

 

कुछ भी अकारण नहीं होता जहाँ में ,

किसी का नफा , किसी का नुकसान नहीं होता क्या ?

 

माना कि हरेक की अपनी क़िस्मत होती है ,

कर्मों से बहुतों ने किस्मत बदली नहीं क्या ?

 

सभी बँधे है साँसों की एक अदृश्य डोर से,

आज तक कोई अमर हुआ है क्या ?

 

जितना गुरुर , अहं पाल ले कोई ,

एक दिन मिट्टी में मिला नहीं क्या ?

 

हर रिश्ते की एक अहमियत है ,

अपेक्षा रखने से पहले उपेक्षा देखी है क्या ?

 

सुख़ -दुःख तो आते -जाते रहेंगे ,

वक्त कभी सदा सा रहता है क्या ?

 

कर्मों का स्पष्ट विधान है " आनन्द ",

बिना बीज के कोई पेड़ उगा है क्या ?

 

ज़िन्दगी तो जीना चाहती है हमारे साथ ,

हमारे पास उसकी सुनने के लिए वक्त है क्या ?

Sunday, April 16, 2023

हसरतें

  

या तो हसरतें जगाती है या जिम्मेदारियाँ ,

दिल तो कहता है - जो है ,जितना है -जिये जा।

 

कहाँ दिल लगता है नौकरी -चाकरी में ,

धन के बिना फिर औकात है क्या?

 

मौज में तो हर कोई रहना चाहता है ,

उस मौज का कोई इंतजाम है क्या?

 

दौड़ तो सभी रहे है "आनन्द " यहाँ ,

हर दौड़ का अंजाम जीत है क्या?

 

किंकर्तव्यविमूढ़ सा हर शख्श यहाँ ,

चौराहे पर खड़ा सोच रहा जाऊँ कहाँ ?

 

दिल तो कहता है सरल है ज़िन्दगी ,

दिमाग को उछलने की जरुरत है क्या ?

 

बेलगाम दौड़ है सब कुछ समेटने की ,

जो समेटा है उसको भरपूर जिया क्या ?

 

आज खपाना है कल की चिंता में ,

वो कल किसी के हिस्से आया है क्या ?

 

या तो हसरतें जगाती है या जिम्मेदारियाँ ,

दिल तो कहता है - चादर तान , सो जा।

Sunday, April 2, 2023

शब्द

 

लिख कम , पढ़ ज्यादा रहा हूँ आजकल ,

शब्दों की जादूगरी समझ रहा हूँ आजकल। 

 

शब्द पंक्ति दर पंक्ति बहुत कुछ कहते है ,

मगर, खाली स्थानों को भी समझ रहा हूँ आजकल। 

 

भावों को पिरोना आसान काम नहीं है ,

शब्दों का उचित चयन सीख रहा हूँ आजकल। 

 

जो लिखा है , उससे ज्यादा अनलिखा होता है ,

दो शब्दों के बीच फ़ासला समझ रहा हूँ आजकल। 

 

लिखे हुए को पढ़ना इक अलग बात है ,

लिखे हुए का मर्म समझ रहा हूँ आजकल। 

 

अभिव्यक्ति का वरदान है ये शब्द ,

कब, कैसे, क्यों,क्या- समझ रहा हूँ आजकल।  

 

तीर की मानिंद है ये शब्द ,

सार्थक संधान सीख रहा हूँ आजकल।