लिख कम , पढ़ ज्यादा रहा हूँ आजकल ,
शब्दों की जादूगरी समझ रहा हूँ आजकल।
शब्द पंक्ति दर पंक्ति बहुत कुछ कहते है
,
मगर, खाली स्थानों को भी समझ रहा हूँ आजकल।
भावों को पिरोना आसान काम नहीं है ,
शब्दों का उचित चयन सीख रहा हूँ आजकल।
जो लिखा है , उससे ज्यादा अनलिखा होता है
,
दो शब्दों के बीच फ़ासला समझ रहा हूँ आजकल।
लिखे हुए को पढ़ना इक अलग बात है ,
लिखे हुए का मर्म समझ रहा हूँ आजकल।
अभिव्यक्ति का वरदान है ये शब्द ,
कब, कैसे, क्यों,क्या- समझ रहा हूँ आजकल।
तीर की मानिंद है ये शब्द ,
सार्थक संधान सीख रहा हूँ आजकल।
No comments:
Post a Comment