Sunday, April 2, 2023

शब्द

 

लिख कम , पढ़ ज्यादा रहा हूँ आजकल ,

शब्दों की जादूगरी समझ रहा हूँ आजकल। 

 

शब्द पंक्ति दर पंक्ति बहुत कुछ कहते है ,

मगर, खाली स्थानों को भी समझ रहा हूँ आजकल। 

 

भावों को पिरोना आसान काम नहीं है ,

शब्दों का उचित चयन सीख रहा हूँ आजकल। 

 

जो लिखा है , उससे ज्यादा अनलिखा होता है ,

दो शब्दों के बीच फ़ासला समझ रहा हूँ आजकल। 

 

लिखे हुए को पढ़ना इक अलग बात है ,

लिखे हुए का मर्म समझ रहा हूँ आजकल। 

 

अभिव्यक्ति का वरदान है ये शब्द ,

कब, कैसे, क्यों,क्या- समझ रहा हूँ आजकल।  

 

तीर की मानिंद है ये शब्द ,

सार्थक संधान सीख रहा हूँ आजकल। 

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