मौसम भी आजकल गजब फिरकी ले रहा है ,
इंसानी फितरत को बराबर टक्कर दे रहा है
,
बस अभी एक कमी रह गयी है फिर भी ,
मौसम फिर भी बदलने की पूर्वसूचना दे रहा
है।
गिरगिटों ने अब रंग बदलना छोड़ दिया है
,
इंसानों ने उनसे ज्यादा रँग बदलना सीख लिया
है ,
आरोप है उनका - वो सुरक्षा के लिये रंग
बदलते है ,
इंसान तो फायदे के लिये रंग बदल रहा है।
साँपो ने भी दुहाई देनी शुरू कर दी है
,
उनके डसने का असर कम हो रहा है ,
इंसानी जुबान में कही ज्यादा विष है अब
,
बिना घाव किये ही तार -तार कर रहा है।
मिट्टी के लिये बबूल उगाना आसान है अब ,
उर्वरा शक्ति का तो सब नाश हो रहा है ,
जिस पानी को बचाना चाहिये बूँद -बूँद ,
वही पानी जहर बन पाताल रिस रहा है।
शुद्ध हवा की चाह मन में , भटक रहा है
,
न जाने किसको -किसको कोस रहा है ,
जिम्मेदारी किसके मत्थे डाले हालातों की
,
खुद को पाक साफ़ घोषित कर रहा हैं।
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