बुराँश के फूलों की पंखुड़ियों से ,
उसके सुर्ख गुलाबी गाल ,
उलझी सी लटों को एक कपडे से ,
बाँध रखी हो जैसे गंगा की धार ,
चंचल हिरणी सी उकाव -हुलार में ,
थिरकते -ठुमकते उसके पाँव ,
मेहनत के पसीने से ढुलकती ,
एक बूँद मोती सी चमकती माथे पर ,
चेहरे पर एक अलग मुस्कान ,
इक पहाड़न उतर रही पहाड़ से ,
लेकर सिर पर इक पहाड़ ,
पहाड़ो में और क्या आयेगा हिस्से ,
हर जगह तो है उसके लिए पहाड़।
धार -धार गूँजते है उसके गीत ,
आँसू बहते उसके गधेरे -गाढ़ ,
उसकी आहट पहचानते रास्ते ,
डुंग -डाव को सुनाती मन की बात ,
फुर्र से उड़ा देती चिंताओं को ,
जैसे गिरे एक डुंग क्षिणी में ,
सूपे में भरकर छाँट लेती हिस्से के ,
कुछ सुकून के पल ,
छटक देती बाकी बेकार,
साँझ होते समेट लेती सब ,
अपने पहलु में - सारा घर संसार।
इक पहाड़न मुझे रोज़ दिखती है ,
चढ़ते-उतरते अपने हिस्से का पहाड़ ,
पहाड़ को भी झुकते देखता हूँ ,
उसके हौंसले के आगे कई बार ,
वो पहाड़न मुस्करा कर समझाती ,
जीवन का एक अनकहा सार ,
जैसे ,जहाँ भी, कैसा -जीवन हो ,
उकाव -हुलार करते रहो पार।
कुमाउँनी शब्द और अर्थ :
उकाव - चढ़ाई , हुलार - उतराई , ढुंग डाव-
पत्थर
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