Thursday, March 9, 2023

इक पहाड़न

  

बुराँश के फूलों की पंखुड़ियों से ,

उसके सुर्ख गुलाबी गाल ,

उलझी सी लटों को एक कपडे से ,

बाँध रखी हो जैसे गंगा की धार ,

चंचल हिरणी सी उकाव -हुलार में ,

थिरकते -ठुमकते उसके पाँव ,

मेहनत के पसीने से ढुलकती ,

एक बूँद मोती सी चमकती माथे पर ,

चेहरे पर एक अलग मुस्कान ,

इक पहाड़न उतर रही पहाड़ से ,

लेकर सिर पर इक पहाड़ ,

पहाड़ो में और क्या आयेगा हिस्से ,

हर जगह तो है उसके लिए पहाड़। 

 

धार -धार गूँजते है उसके गीत ,

आँसू बहते उसके गधेरे -गाढ़ ,

उसकी आहट पहचानते रास्ते ,

डुंग -डाव को सुनाती मन की बात ,

फुर्र से उड़ा देती चिंताओं को ,

जैसे गिरे एक डुंग क्षिणी में ,

सूपे में भरकर छाँट लेती हिस्से के ,

कुछ सुकून के पल ,

छटक देती बाकी बेकार,

साँझ होते समेट लेती सब ,

अपने पहलु में - सारा घर संसार। 

 

इक पहाड़न मुझे रोज़ दिखती है ,

चढ़ते-उतरते अपने हिस्से का पहाड़ ,

पहाड़ को भी झुकते देखता हूँ ,

उसके हौंसले के आगे कई बार ,

वो पहाड़न मुस्करा कर समझाती ,

जीवन का एक अनकहा सार ,

जैसे ,जहाँ भी, कैसा -जीवन हो ,

उकाव -हुलार करते रहो पार। 


कुमाउँनी शब्द और अर्थ :  

उकाव - चढ़ाई , हुलार - उतराई , ढुंग डाव- पत्थर

 

No comments:

Post a Comment