Sunday, May 5, 2024

आठ बीस की मेट्रो

 

एस्कलेटर में भी भाग रहा था ,

घडी पर आठ अठारह दिख रहा था ,

अगर छूट गयी तो अगली पांच मिनट बाद आयेगी ,

अटेंडेंस में आज लेट मार्क लग जायेगी।

 

हाँफता हाँफता प्लेटफॉर्म पर पहुँचा ,

लम्बी लाइन लगी पड़ी थी ,

जेब से रुमाल निकाल पसीना पोछा ,

मोबाइल जेब में रख , घुसने की जल्दी पड़ी थी।

 

ट्रैन आयी , रुकी , बाहर निकलने देने की किसको फुर्सत थी ,

बाहर वालों को अंदर घुसने की जल्दी पड़ी थी ,

ठसाठस डिब्बा भर गया , ऑटोमैटिक दरवाजों की आफत आयी थी ,

किसी का बैग फँस गया था दो पाटो के बीच , कड़ाक की आवाज आयी थी।

 

अंदर साँस लेने की जगह नहीं थी ,

एक पैर में खड़े होने की मजबूरी थी ,

अच्छा बस ये था , अंदर ए सी की ठंडी हवा चल रही थी ,

ध्यान दिया बैग पर , उसी के बैग से शायद वो आवाज आयी थी।

 

फुर्सत कहाँ थी - बैग खोल कर देखने की ,

वैसे भी इतनी जगह कहाँ थी ,

अंतिम स्टेशन उसी का था ,

वहाँ से शटल पकड़नी थी।

 

गंतव्य से पहुंचने से दो स्टेशन पहले सीट मिली ,

सबसे पहले नजर अब बैग पर पड़ी ,

डरते हुए बैग को खोलने की हिम्मत जुटाई ,

लैपटॉप की स्क्रीन टूटी हुई पायी।

 

ओफ्फ , अब ऑफिस में बहाना क्या बनाऊँगा ,

वो आई टी हेड वैसे ही खड़ूस है ,

माउस ख़राब होने पर दो पेज का एक्सप्लनेशन लिखवाता है ,

फिर आधे पैसे एच आर वाला सैलरी से काट लेता है।

 

मेट्रो रुकी , आवाज आयी - यह अंतिम स्टेशन है ,

घडी देखी - आज मेट्रो भी पांच मिनट लेट है ,

अब तो शटल भी चली जायेगी ,

पक्का आज हाफ डे छुट्टी लग जायेगी।

 

बॉस को मैसेज भेजा - थोड़ी देर हो जायेगी ,

बॉस ने उत्तर दिया- आज दस बजे प्रेजेंटेशन है तेरी भाई ,

प्रेजेंटेशन फ़ोन से बॉस को भेजा ,

मैसेज किया , आप ही दे देना , मेरे घर में कुछ इमरजेंसी आयी।

 

फ़ोन में कंप्यूटर रिपेयर की दूकान खोजी ,

वापस उसी ट्रैन में बैठकर अब कुछ सांस आयी ,

घर से निकलते ही एक काली बिल्ली रास्ता काट गयी थी ,

ध्यान आया - ये सारा खेल उसी का है भाई।

Friday, May 3, 2024

आम आदमी

 

वैसे तो आम आदमी ,

आम जैसा ही है ,

आम के आम है ,

और गुठली के भी दाम है ,

लेकिन आम आदमी बहुत परेशान है ,

उलझा हुआ असमंजस्य में है ,

खास होने की तरकीबे खोजता ,

आम होने से खीजता है ,

रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ऐसा उलझा है ,

सुबह का जोश शाम तक औंधे मुँह गिरता है ,

नैतिकता , सच्चाई , ईमानदारी -सब पाठ रटता ,

कुछ अतिरिक्त के लिये हरदम सोचता है ,

करना बहुत कुछ चाहता है , जुझारू है ,

निम्न और उच्च के बीच पिसा हुआ नजर आता है ,

इज्ज़त बहुत प्यारी है , यही शायद इक बपौती है ,

आम आदमी का खुद से ख़ुदी का संघर्ष है ,

हर कोई उसे बरगलाता है ,

इक अदद नौकरी उसका सहारा ,

घर और ऑफिस सँभालने में जीवन गुजर जाता है ,

एक टीस  उसे रोज सालते रहती है ,

जब कोई ताना मारे -"ज़िन्दगी में किया क्या है ?"