वैसे तो आम आदमी ,
आम जैसा ही है ,
आम के आम है ,
और गुठली के भी दाम है ,
लेकिन आम आदमी बहुत परेशान है ,
उलझा हुआ असमंजस्य में है ,
खास होने की तरकीबे खोजता ,
आम होने से खीजता है ,
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ऐसा उलझा है ,
सुबह का जोश शाम तक औंधे मुँह गिरता है ,
नैतिकता , सच्चाई , ईमानदारी -सब पाठ रटता ,
कुछ अतिरिक्त के लिये हरदम सोचता है ,
करना बहुत कुछ चाहता है , जुझारू है ,
निम्न और उच्च के बीच पिसा हुआ नजर आता है ,
इज्ज़त बहुत प्यारी है , यही शायद इक बपौती है ,
आम आदमी का खुद से ख़ुदी का संघर्ष है ,
हर कोई उसे बरगलाता है ,
इक अदद नौकरी उसका सहारा ,
घर और ऑफिस सँभालने में जीवन गुजर जाता है ,
एक टीस उसे रोज
सालते रहती है ,
जब कोई ताना मारे -"ज़िन्दगी में किया क्या है ?"
No comments:
Post a Comment