Thursday, November 2, 2023

सागर स्तुति

 


हाथ जोड़े तट पर बीत गए दिन तीन ,

जलाधीश का फिर भी मन न पिघला,

आँख बंद , ध्यान लगाए एक शिला पर ,

करते रहे याचना, स्तुति करे जगदीश। 

 

लक्ष्मण पुनि -पुनि समझाये ,

सामर्थ्य पर विश्वास करो कौशलधीश ,

शांति से जहाँ सुलझ जाये बात ,

क्यों उपयोग करो तूणीर –तीर कहे कुलधीश ।  

 

अनुनय -विनय गुण है वीर का ,

उसको सुशोभित होती है ,

युद्ध तो बहुत सरल मार्ग है ,

तलवार फिर शीश  माँगती है।  

 

जड़बुद्धि  विनय समझ न पाया ,

लोभी से कैसे दान की आशा ,

कुटिल न समझे प्रीत की भाषा ,

धैर्य , संयम की भी एक सीमा। 

 

लाओ , लक्ष्मण - तूणीर लाओ ,

अब धनुष पर अग्नि बाण संधान होगा ,

सूखा दूँगा इस जलातिरेक को ,

इस मूर्ख को अब ज्ञान न दूँगा। 

 

क्रोधित राम की आँखे हुई लाल ,

प्रत्यंचा चढ़ा , धनुष हाथ लेकर की टँकार ,

कांप उठे सब जल -थल- आकाश चराचर ,

"त्राहिमाम-त्राहिमाम " जग गया सागर। 

 

प्रकृति विधान सब आपका प्रभु ,

सब आपके आदेश अधीन ,

मैं जड़बुद्धि कैसे न मानूँ ,

जब साक्षात् खड़े हो जगदीश। 

 

युक्ति मैं बतलाता हूँ ,

सागर पार कराता हूँ ,

रामकाज में विघ्न कैसा ,

खुद का परलोक सुधारता हूँ। 

 

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