जीवन एक सागर..
ज़िन्दगी एक नाव,
हम हैं केवट और हमारा संघर्ष उसकी पतवार,
पतवार संभाले हम भी चल रहें हैं जीवन सागर में,
और करोडो लोग हमारे साथ.
न जाने कहाँ किनारा हैं इस सागर का,
किसी को भी नहीं हैं इसका एहसास.
किसी की नाव गोते खा रही ,
किसी को लहरों का मिल रहा हैं साथ.
कोई लेकर चल रहा अपनों को लेकर साथ,
कोई अकेला ही चप्पू चला रहा और कर रहा मंजिल की तलाश.
हर एक का बस एक लक्ष्य ,
जाना हैं इस सागर के पार,
कोई सीधी रखता हैं पतवार,
कोई हवायो के रुख को देख कर चल रहा अपनी चाल.
कोई तेज चप्पू चलता ,
कोई रखता अपनी मंद चाल.
कितने पीछे छूट रहे इस सफ़र पर,
कितनो का मिल रहा हैं साथ.
जीवन सागर में ज़िन्दगी नाव,
करती जाती कितने पड़ाव पार.
जारी हैं अनंत काल से ये सफ़र ,
पता नहीं कितनो ने पार किया ये सागर,
चलो चलो , आगे चलो ....
शायद हम भी हो जाए उस पार.
निकल पड़ा हूँ लेखन यात्रा में , लिए शब्दों का पिटारा ! भावनाओ की स्याही हैं , कलम ही मेरा सहारा !!
Thursday, August 26, 2010
Friday, August 20, 2010
चौथा पड़ाव......समय सबसे बलवान
समय का चक्र अपनी गति से घूमता जाता हैं,
कभी सुख , कभी दुःख हर एक को दे जाता हैं.
हर ख़ुशी में ये बात याद रखो, ये पल भी बीत जायेगा !
समय का चक्र हैं, कभी भी पल बदल जायेगा.
दुःख के दिन जरा लम्बे लगते हैं ! घाव जरा धीरे सूखते हैं.
सुख के दिन जरा जल्दी बीतते हैं ! ज़िन्दगी के ये दो पहलू चलते रहते हैं.
समय अपनी गति से चलता रहता हैं !
न वो किसी के लिए रुकता हैं और न अपनी चाल मंद करता हैं.
उसको लिए सब बराबर हैं जगत में, वो किसी के लिए कोई फर्क नहीं करता हैं !
किसी को घाव , तो किसी को मरहम देकर रेत की तरह हर एक की मुट्ठी से फिसलता हैं.
कभी सुख , कभी दुःख हर एक को दे जाता हैं.
हर ख़ुशी में ये बात याद रखो, ये पल भी बीत जायेगा !
समय का चक्र हैं, कभी भी पल बदल जायेगा.
दुःख के दिन जरा लम्बे लगते हैं ! घाव जरा धीरे सूखते हैं.
सुख के दिन जरा जल्दी बीतते हैं ! ज़िन्दगी के ये दो पहलू चलते रहते हैं.
समय अपनी गति से चलता रहता हैं !
न वो किसी के लिए रुकता हैं और न अपनी चाल मंद करता हैं.
उसको लिए सब बराबर हैं जगत में, वो किसी के लिए कोई फर्क नहीं करता हैं !
किसी को घाव , तो किसी को मरहम देकर रेत की तरह हर एक की मुट्ठी से फिसलता हैं.
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