पार्क में खेल रहे एक दादा पोते को में बड़े ध्यान से देख रहा था. अचानक पोता दौड़ते दौड़ते गिर पड़ा और रोने लगा , दादा बेंच में बैट्ठे रहे तो पोता उनकी तरफ देख कर फिर जोर जोर से रोने लगा. अबकी बार दादा ने उसकी तरफ से अपना ध्यान हटाया और पेड़ की पत्तियों को गिनने की एक्टिंग करने लगे. पोता उठा और दादा के पास आ गया और फिर से रोने लगा और दादा की उंगली पकड़ के उस जगह ले गया जहा वो गिरा था. दादा ने उस जगह पर जो गड्ढा बना था उसको बगल से मिटटी ले कर भर दिया और बोले, " बेटा, अब इस जगह कोई बच्चा नहीं गिरेगा. " बच्चे ने भी देखा देखि अपनी नन्ही उंगलियों से मिटटी ला कर दल दी और खुश हो गया.
इस बात से मुझे अपनी सुबह की घटना याद आ गयी जब मेरी बिटिया एक झूले से गिर पड़ी और मैंने अपनी बिटिया को समझाने के लिए झूले को दो चार हाथ पैर मारे और बोला, " ले बेटा , इसने आपको गिराया, मैंने इसको मार दिया. हिसाब किताब बराबर. "
अब मुझे अपने समझाने और उस बुजुर्ग के समझाने में अंतर समझ आ गया. मैं मन ही मन मुस्कराता रह गया.
निकल पड़ा हूँ लेखन यात्रा में , लिए शब्दों का पिटारा ! भावनाओ की स्याही हैं , कलम ही मेरा सहारा !!
Sunday, October 31, 2010
Monday, October 18, 2010
बचपन से सीखो ज़िन्दगी जीना..
" काश ! खुदा मुझसे कहता किसी रोज़,
बता तुझे सीखना हो अपनी बीती ज़िन्दगी से ,
तो वो क्या होगा?
मैं कहता खुदा से,
"मुझे फिर से मुझे मेरे बचपन में पंहुचा दे,
इस ज़िन्दगी की दौड़ भाग से,
थोड़ी सी आज़ादी दिला दे.
न सुकून हैं यहाँ, बस दौड़ हैं आगे और आगे की ,
मुझे मेरे बचपन के वो अल्हड दिन फिर दिला दे.
छोटी छोटी बातो में रूठने और बिना किसी बात पर,
जोर जोर से ठहाके लगाना फिर से सीखा दे.
यु बिना काम के घंटो घूमना फिरना ,
बिना सोचे समझे दिल की बात कहलाना सिखा दे.
बिना किसी भेदभाव के किसी से दोस्ती कर लेना,
माँ की डाट को एक कान से सुनकर दूसरी कान से निकालना सीखा दे.
पापा अगर किसी बात पर लगा भी तमाचा तो,
अगले ही पल फिर उनसे किसी बात के लिए जिद करना सीखा दे.
आगे क्या होगा , कैसे होगा की फिक्र छोड़ बस उस वक़्त में जीना सीखा दे. "
बता तुझे सीखना हो अपनी बीती ज़िन्दगी से ,
तो वो क्या होगा?
मैं कहता खुदा से,
"मुझे फिर से मुझे मेरे बचपन में पंहुचा दे,
इस ज़िन्दगी की दौड़ भाग से,
थोड़ी सी आज़ादी दिला दे.
न सुकून हैं यहाँ, बस दौड़ हैं आगे और आगे की ,
मुझे मेरे बचपन के वो अल्हड दिन फिर दिला दे.
छोटी छोटी बातो में रूठने और बिना किसी बात पर,
जोर जोर से ठहाके लगाना फिर से सीखा दे.
यु बिना काम के घंटो घूमना फिरना ,
बिना सोचे समझे दिल की बात कहलाना सिखा दे.
बिना किसी भेदभाव के किसी से दोस्ती कर लेना,
माँ की डाट को एक कान से सुनकर दूसरी कान से निकालना सीखा दे.
पापा अगर किसी बात पर लगा भी तमाचा तो,
अगले ही पल फिर उनसे किसी बात के लिए जिद करना सीखा दे.
आगे क्या होगा , कैसे होगा की फिक्र छोड़ बस उस वक़्त में जीना सीखा दे. "
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