हालातो को देख कर दिमाग ने उकसाया ,
अब कविताये लिखने से मन उकता गया हैं.
अब नहीं लिखूंगा क्यूंकि किसी एक विषय पर मन टिकना बंद हो गया हैं.
मगर मेरा कवि मन कहाँ मेरी सुनने वाला हैं,
वो हर हालात पर कविताये करने को तैयार रहता हैं.
सोचता हूँ अब इस साल से यथार्थ कविताये लिखूंगा.
सब्जबाग जो अब तक दिखाता था,
सच के धरातल पर झाँकने की कोशिश करूँगा.
लोगो के मर्म को कुछ बाँटने का जतन करूँगा,
ज़िन्दगी को थोडा आइना दिखाऊंगा.
भटके हुए को थोडा रोशनी दिखाऊंगा,
रमे हुए लोगो को कुछ गुदगुदाने का प्रयास करूँगा.
जो जी रहे हैं सिर्फ अपने लिए,
उन्हें थोडा दुसरो के लिए जीना सिखाऊंगा.
जितना भी बन पड़ेगा,
इस भागमभाग की ज़िन्दगी में थोडा सा ही सही, लोगो को सुकून दिलाऊंगा.