बिगुल फूंक गया देखो फिर से , आयी चुनावी बेला !
नेता जी पांच साल में फिर से जागे और बुलाया चेलो का रेला !!
फिर से पब्लिक के पास जाना हैं , कुछ तो मुद्दा बताओ !
काम तो कुछ किया नहीं हैं , कोई तो मुद्दा सुलगाओ !!
हमने तो अपनी जेबें भर ली मगर कुछ और कसर रह गयी हैं बाकि !
अभी तो दो पुस्तो के लिए जोड़ लिया हैं , पांच पुस्ते रह गयी हैं बाकी !!
पांच साल में एक बार भी मुड़कर देखा नहीं अपने वोटर को !
वो बेचारा रो रो कर कोस रहा था अपने फैसले को !!
नेता जी सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहन हाथ जोड़े पहुँचे पब्लिक पास !
बटवाएं थे पर्चे पहले ही क्या क्या किया उन्होंने काम इन पांच साल !!
लेकिन पब्लिक इस बार समझदार निकली !
नेता जी कि पार्टियो कि खूब मौज उड़ाई !!
कही कही पर कालिख पोती और कही कही खूब डंडे बरसायी !
और कहा ," तुम चुनावी मौसम के हो मेंडक , अब तुम्हे पब्लिक कि याद आयी , लोकतंत्र कि तुमने नेताजी , कैसी धज्जियाँ उड़ाई " !!
संसद में जहाँ जनहित का कानून बनना था , तुमने कुर्सी मेज चलाये !
अपनी तनख्वाह बढ़ाने का विधेयक चंद मिनटो में पास किया ,जनता के हितो के कानून में बार बार रोड़े लगाये !
अब हम तुम्हे लटकायेंगे और तुम्हारे पाँच सालो के कर्मो का परिणाम सुनाएंगे !
जनता को तुमने अब तक अपने हाथो कि कठपुतली समझा था , अब जनता दरबार में तुम्हारा फैसला सुनायेंगे !!
मत भूलो नेताजी , तुम्हारे लिए भले ही पांच साल का वक्त बहुत कम होता हैं !
जनता का हर रोज़ तिल तिल जीना - मरना होता हैं !!
सुधर जाओ अब भी वक्त हैं - जनता का असली गुस्सा अभी बाकी हैं !
एक बार फिर मौका दे रही हैं - नहीं तो ज़लज़ला अभी बाकी हैं !!
जनता के चुने हुए नुमाइंदे हो , उनके हित की भी सोचो !
लोकतंत्र में खुद को भगवान तो न समझो !!
जिस दिन जनता का पारा थोडा सिर से ऊपर चला जायेगा !
दौड़ा दौड़ा कर मारेगी फिर तू कहाँ जायेगा !!
नेता जी पांच साल में फिर से जागे और बुलाया चेलो का रेला !!
फिर से पब्लिक के पास जाना हैं , कुछ तो मुद्दा बताओ !
काम तो कुछ किया नहीं हैं , कोई तो मुद्दा सुलगाओ !!
हमने तो अपनी जेबें भर ली मगर कुछ और कसर रह गयी हैं बाकि !
अभी तो दो पुस्तो के लिए जोड़ लिया हैं , पांच पुस्ते रह गयी हैं बाकी !!
पांच साल में एक बार भी मुड़कर देखा नहीं अपने वोटर को !
वो बेचारा रो रो कर कोस रहा था अपने फैसले को !!
नेता जी सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहन हाथ जोड़े पहुँचे पब्लिक पास !
बटवाएं थे पर्चे पहले ही क्या क्या किया उन्होंने काम इन पांच साल !!
लेकिन पब्लिक इस बार समझदार निकली !
नेता जी कि पार्टियो कि खूब मौज उड़ाई !!
कही कही पर कालिख पोती और कही कही खूब डंडे बरसायी !
और कहा ," तुम चुनावी मौसम के हो मेंडक , अब तुम्हे पब्लिक कि याद आयी , लोकतंत्र कि तुमने नेताजी , कैसी धज्जियाँ उड़ाई " !!
संसद में जहाँ जनहित का कानून बनना था , तुमने कुर्सी मेज चलाये !
अपनी तनख्वाह बढ़ाने का विधेयक चंद मिनटो में पास किया ,जनता के हितो के कानून में बार बार रोड़े लगाये !
अब हम तुम्हे लटकायेंगे और तुम्हारे पाँच सालो के कर्मो का परिणाम सुनाएंगे !
जनता को तुमने अब तक अपने हाथो कि कठपुतली समझा था , अब जनता दरबार में तुम्हारा फैसला सुनायेंगे !!
मत भूलो नेताजी , तुम्हारे लिए भले ही पांच साल का वक्त बहुत कम होता हैं !
जनता का हर रोज़ तिल तिल जीना - मरना होता हैं !!
सुधर जाओ अब भी वक्त हैं - जनता का असली गुस्सा अभी बाकी हैं !
एक बार फिर मौका दे रही हैं - नहीं तो ज़लज़ला अभी बाकी हैं !!
जनता के चुने हुए नुमाइंदे हो , उनके हित की भी सोचो !
लोकतंत्र में खुद को भगवान तो न समझो !!
जिस दिन जनता का पारा थोडा सिर से ऊपर चला जायेगा !
दौड़ा दौड़ा कर मारेगी फिर तू कहाँ जायेगा !!