Friday, February 17, 2017

मतदान बाद , गणना से पहले



नींद उडी हैं नेताओ की , 
ई वी एम  में बंद हो गयी किस्मत।  

कुछ अब सोच रहे जीत गए तो कैसे कमायेंगे ? 
हार गए तो पाँच साल कैसे बितायेंगे ? 

बड़ी कशमकश चल रही हैं , 
ज़िन्दगी नीरस सी लग रही हैं।  

वादों -इरादों के पोस्टरों को जला  दिया हैं , 
अब किसी के हाथ न पड़े , छुपा दिया हैं।  

हर मतदाता को शक की निगाह से देख रहे हैं , 
लिया तो इन्होंने  मुझसे से हैं , वोट पता नहीं - किसे दिया हैं ? 

नेताजी के कट नहीं रहे दिन रात , 
चेले अब भी दिलासा दे रहे हैं - जीतोगे बस आप।  

नेता जी ने अब विपक्षी उम्मीदवारों से भी दोस्ती कर ली हैं , 
अपने भाषणों में उसकी खिल्ली पर माफी माँग ली हैं।  

समझौता हो गया है - तुम जीते तो हमारा भी काम करना , 
हम जीते तो तुम हमें अपना भाई ही समझना।  

दोनों अब साथ साथ कहकहे लगाते हैं , 
चेले दोनों के साथ में अब पार्टी उड़ाते हैं।  

इन्तजार में दिन कट रहे हैं , 
ख्याली पुलाव रोज़ बन रहे हैं।

एक दिन का राजा - मतदाता ,
अपने काम धंधे , रोज़ी रोटी के जुगाड़ में लग जाता हैं।