हे ! रचनाकार जगत के ,
नमन और अभिनन्दन ,
चराचर जगत के स्वामी ,
हाथ जोड़कर सादर वंदन।
लोभ , माया , क्रोध , अहंकार से ,
चहुओर हो रहा क्रंदन ,
करने कब आओगे इसका हरण ,
कैसे मौन हो ? हे ! रघुनन्दन।
ज्ञान पर अज्ञान भारी ,
शुभ नहीं है ये लक्षण ,
सिसक रही है जगत जननी ,
हो रहा रोज चीरहरण।
सेवक भक्षक बन गए ,
भूल गए सब ईमान धर्म ,
झूठ की जय जयकार हो रही ,
सत्य तोड़ रहा है दम।
तन्द्रा तोड़ो , सेज छोड़ो
अवतरित हो अब भगवन ,
मूल्यों की स्थापना के लिए ,
छेडो फिर एक " महाभारत " का रण।