उम्र का चालीसवाँ भी न गजब ढाता है ,
अरमान बीस के से ,
हड्डियों का जोर चटकता है ,
उमंगें आसमान सी ,
कदम उठाने से पहले चेताता है ,
कानो के नीचे पके बाल ,
बार बार याद दिलाते है,
जोखिम कोई अब न ले ,
जैसी चल रही है ज़िन्दगी ,
अब वैसी ही गुजार,
ये उम्र का चालीसवाँ भी गजब ढाता है ,
आसमां से तारे तोड़ने की हसरत ,
बगीचे से फूल तोड़ने में भी घबराता है।
ज़िन्दगी के सफर के बिलकुल बीच में खड़ा
,
दिल घबराता है ,
एक तरफ कुछ हसीं यादें ,
आगे का रास्ता धुँधला सा नजर आता है ,
दिमाग कहता है मान ले अब ,
दिल कहा सुनता है ,
एक तरफ जिम्मेदारियों का बोझ ,
दूसरी तरफ दिमाग कुछ नया करने को उकसाता
है ,
दिल की अपनी अलग उथल पुथल ,
हर कदम एक नई दुविधा खड़ी कर देता है ,
ये उम्र का चालीसवाँ भी बहुत गजब ढाता है
,
दिल और दिमाग की जंग में ,
समय और आगे खिसकता चला जाता है।