वह
एक कविता
लिखना चाहती
थी ,
एक
सर्वश्रेष्ठ कविता
,
कब
से ,
बचपन
में भी
उसने सोचा
,
कलम
भी उठायी
,
कुछ
सपने लिखे
,
खुले
आसमान के
,
नीले
समंदर के
,
आजाद
हवा के
,
फिर
थोड़ा बड़ी
हुई ,
तो
वह फाड़
दी ,
फिर
उसने कलम
उठायी ,
जब
वह ब्याह
कर एक
,
अनजान
से घर
में गयी
,
अब
उसने लिखा
,
प्यार
का सपना
,
सपनो
का घर
,
और
छुपा दी
वो कविता
,
फिर
हाथ लगी
वो कविता
उसके ,
पढ़ी
उसने दो
चार बार
जी भरकर
,
फिर
तोड़ मोड़कर
,
डाल
दी रद्दी
के टोकरे
पर ,
सालो
बाद उसको
फिर फुर्सत
मिली ,
जब
वो फिर
से तनहा
थी ,
सोचा
उसने ,
आज
लिखती हूँ
वो कविता
,
जिसे
वह लिखना
चाहती थी
उम्र भर
,
अब
उसके पास
शब्द भी
थे ,
अनुभव
भी था
,
भाव
भी थे
,
लेकिन
चार पंक्तियों से ,
आगे
न बढ़
पायी ,
लिखना
बहुत कुछ
चाह रही
थी ,
मगर
शायद लिखने
में ,
वो
पल ढूंढ
रही थी
,
जो
उसके अपने
थे ,
वह
तो वही
लिखना चाह
रही थी
,
मगर
न जाने
कुरेदने पर
भी ,
उसको
वो नहीं
मिल रहे
थे ,
लगता
है वो
कविता अधूरी
ही रह
जायेगी ,
वो
कविता जो
सर्वश्रेष्ठ हो
सकती थी
,
लेकिन
चार पंक्तियों से ,
आगे
क्यों नहीं
बढ़ पा
रही थी
?
और
वह कलम
हाथ में
पकडे ,
शून्य
में न
जाने क्या
झाँक रही
थी ?
उसने बस अभी ये लिखा था ,
खुले आसमान की वो आजाद नन्ही सी परी ,
समेटना चाहती थी - समंदर को अपने आँचल में ,
हवाओ को अपने जुड़े में गुथकर ,
फूलो सा महकना और चिड़ियों सा उड़ना चाहती थी।