महाज्ञानी उद्धव पूछे ,
"तुम प्रेम कैसे कर सकती हो श्रीकृष्ण
से ,
जब तुम्हे पता है वो हासिल नहीं ,
कर लो तुम जितना जतन ,
श्रीकृष्ण तुम्हारे कभी नहीं । "
एक गोपी बोली ,
" उद्धव जी , आपको किसने बोला
हमें प्रेम करने के लिए कृष्ण चाहिए ,
हमने कृष्ण से कभी प्यार किया ही नहीं
,
कृष्ण तो भगवान् है ,
हम जानते है - वो हमें हासिल नहीं
,
हमने तो कान्हा से प्यार किया है ,
जो बाँसुरी बजाता था ,
हमारी पानी की मटकियाँ फोड़ता था ,
और हमारे कपड़े चुराता था ,
हम तो द्वारका वाले श्री कृष्ण को जानते
ही नहीं ,
हम तो माखनचोर से प्रेम करते है ,
तुम्हारे श्रीकृष्ण से नहीं।
"
दूसरी सखी बोली ,
" कह देना उद्धव जी अपने श्रीकृष्ण
से ,
भूल जाए हमें , हम द्वारका कभी आएंगे नहीं ,
हम तो बृज की गलियाँ ही घूमेंगी ,
जहाँ फिरा करता था नन्द यशोदा चितचोर
कहीं ,
मुरली अपनी यही छोड़ गया कान्हा हमारा
,
उसकी तान से झूमते है हम सभी ,
इन गलियों में उसका प्रेम अब भी बरसता
है ,
तुम क्या जानो उद्धव जी ,
प्रेम एकतरफा भी सम्पूर्ण होता है,
और फिर प्रेम तो प्रेम है ,
भौतिकता से बहुत परे होता है,
साँसो में भरा होता है,
पाने , न पाने की चिंता से मुक्त ,
दिल में हमेशा जीवित रहता है।
"
उद्धव जी अपना व्यावहारिक ज्ञान भूल
गए ,
इस प्रेम के आगे नतमस्तक हो गए ,
प्रेम एक अबूझ पहेली ,
श्रीकृष्ण के सन्देश को समझ गए।