अंतर्मन की
गिरह सुलझे ,
तो कुछ लक्ष्य
मिले ,
वर्ना जीवन
पथ पर मुसाफिर ,
उलझे ही उलझे।
मन कुछ और
कहे ,
दिमाग कहीं
की राह पकड़े ,
आकर फिर किसी
मोड़ पे ,
दोनों अटके
रे अटके।
क्या सही
, क्या गलत
दोनों अपने
कयास लगाये,
नफा नुकसान
लगाते ,
उलझन में भटके
ही भटके।
एक मूल पर
जब दोनों टिके ,
जीवन पथ कितना
सुगम बने ,
आपाधापी जीवन
की ,
सुकून मिले
, सुकून मिले।