तेरी यादों
को लेकर चलता हूँ ,
मैं रोज़ यूँ
ही दिन चढ़ता हूँ ,
मायूसी छाती
है गर कभी तो ,
वो बिताया
पल याद करता हूँ।
रात को तेरी
आँचल का साया ,
समझकर ओढ़ सो
जाता हूँ ,
सपनों में
तो तुम आती ही हो ,
तेरे माथे
को चूम लेता हूँ।
मुश्किल तो
है तुम्हारे बगैर ये सफर ,
नियामत है
ज़िन्दगी समझ लेता हूँ ,
जितना चलना
लिखा था तुम्हारे साथ ,
चला , वहीं
याद बना , अकेले चलता हूँ।
पता है वो
छाँव नहीं मिलेगी मुझे ,
न अब वो नरम
स्पर्श नसीब में है ,
कुदरत का नियम
कठोर है ये ,
रोज़ अपने दिल
को बहलाता हूँ।
तुम कहती थी
मैं विस्तार हूँ तुम्हारा ,
इसलिए रोज़
ये दिल धड़काता हूँ ,
माँ तुम बहुत
याद आती हो ,
चुपके चुपके
अकेले में बहुत रोता हूँ।