Thursday, August 19, 2021

याद

 

तेरी यादों को लेकर चलता हूँ ,

मैं रोज़ यूँ ही दिन चढ़ता हूँ ,

मायूसी छाती है गर कभी तो ,

वो बिताया पल याद करता हूँ।

 

रात को तेरी आँचल का साया ,

समझकर ओढ़ सो जाता हूँ ,

सपनों में तो तुम आती ही हो ,

तेरे माथे को चूम लेता हूँ।

 

मुश्किल तो है तुम्हारे बगैर ये सफर ,

नियामत है ज़िन्दगी समझ लेता हूँ ,

जितना चलना लिखा था तुम्हारे साथ ,

चला , वहीं याद बना , अकेले चलता हूँ।

 

पता है वो छाँव नहीं मिलेगी मुझे ,

न अब वो नरम स्पर्श नसीब में है ,

कुदरत का नियम कठोर है ये ,

रोज़ अपने दिल को बहलाता हूँ।

 

तुम कहती थी मैं विस्तार हूँ तुम्हारा ,

इसलिए रोज़ ये दिल धड़काता हूँ ,

माँ तुम बहुत याद आती हो ,

चुपके चुपके अकेले में बहुत रोता हूँ।