बात अलग थी उस अल्हड़पन में ,
जब मौजो का इक दरिया बहता था ,
खाली होती थे जेब हमारी ,
दरियादिली का समंदर बहता था।
मंजिल का पता नहीं था मगर ,
बेमकसद घूमना एक शगल था ,
नफे -नुकसान की किसको परवाह थी ,
हर शक्ल में इक दोस्त दिखता था।
आसमां को मुट्ठी में करने की ललक थी ,
हवाओं से बातें अक्सर होती थी ,
पता नहीं था -क्या होगा भविष्य में ,
पल -पल जी लेने की अजब हसरत थी।
चाँद को आगोश में लेने का सपना था ,
सूरज से आँखे मिलाने की जुर्रत थी
,
इक नन्हा सा ख्वाब पलता था आँखों में ,
हमारी कागज़ की नाव पानी में तैरती थी।
खुली आँखों में कुछ सपने थे,
हर सपने की इक हरारत थी ,
कहाँ परवाह थी तूफानों की ,
तूफानों से अपनी नूरा -कुश्ती थी।
नियम -कानून सब बासी लगते थे ,
विद्रोह की चिंगारी सुलगती थी ,
अम्मा -बाबूजी की सुलझी बातें,
दिमाग में उलझन पैदा करती थी।
बात अलग थी उस अल्हड़पन में ,
जब मौजो का इक दरिया बहता था ,
खाली होती थे जेब हमारी ,
दरियादिली का समंदर बहता था।