किसी ने पूछा ," क्या उपलब्धियाँ पायी ?"
मैंने भी जम कर सुना
दी उपलब्धियाँ ,
यहाँ तीर मारा , वो सफलता
पायी ,
घर जोड़ लिया और जोड़ लिया
चार पहिया सवारी ,
थोड़ा बहुत बैंक बैलेंस
भी बना लिया ,
और क्या चाहिये भाई
?
मुस्कराते हुए उसने कहा
,
" ये सब तो बढ़िया
है दोस्त ,
ये तो सब करते है ,
तूने अतिरिक्त क्या किया
?
उसका बखान कर भाई ,
सच -सच बता , क्या तू
ज़िन्दगी से खुश है भाई ?"
अचानक से दिमाग सुन्न
,
दिल परेशान हो गया ,
ये तो मैं भूल ही गया
था ,
इस चक्कर में आधी उम्र
खप गयी भाई ,
यकीनन ये सब निहायत जरुरी
है ,
मगर इस सबका मजा लेने
के लिये ,
वक्त कहाँ है तेरे पास
भाई ,
जो हासिल किया , उसका
लुफ्त लिया कहाँ ,
रोज़ फिर नई ख्वाईश के
लिये दौड़ रहा ,
इकठ्ठा कर लेगा तू इक
दिन बहुत कुछ ,
दौड़ता रहा यूँ ही तू
हरदम ,
तब तक शायद बहुत देर
हो चुकी होगी,
धरा रहेगा सब कुछ ,
दौड़ कभी पूर्ण न होगी।