लोग कहते हैं दुनिया बदल गयी हैं, मगर मैं जब सोचता हूँ,
लगता हैं दुनिया तो जस की तस हैं,
हमने अपने जीने के अंदाज को बदल लिया हैं.
सूरज आज भी पूरब से ही निकलता है,
पानी का स्वाद और रंग आज भी वैसा ही हैं,
हवा आज भी दिखाई नहीं देती ,
पेड़ आज भी छाया और फल देते हैं.
पत्थर आज भी चुपचाप पड़े रहते हैं.
इंसान आज भी अमर नहीं हैं,
फिर बदला क्या.........?
हमने अपनी ज़िन्दगी को सरल बना लिया हैं ,
पैदल की जगह गाड़िया, प्लेन या रेल बना लिए हैं ,
सन्देश भेजने के लिए कबूतरों से इन्टरनेट पर आ गए हैं .
सोने के लिए डनलप के गद्दे बिछा तो लिए, आँखों से नींद गायब हो गयी हैं.
कल तक दादी अम्मा की कहानी सुनते थे, अब टीवी , फिल्मो से काम चला लेते हैं ,
बीमारी जो कल तक इक्का दुक्का थी, अब हजार कर दी हैं .
खाना बनाने के लिए चूल्हे से ओवेन बना लिए हैं ,
दीये को अब हमने अलविदा कह बल्ब में आ गए.
ऐसा नहीं हैं की सबकी ज़िन्दगी बदल गयी,
आज भी कुछ लोग पुरातन जीवन जी कर भी खुश हैं,
हम सब कुछ हासिल करने के बावजूद भी दुखी,
बदली दुनिया नहीं हैं, बदले हैं हम....
जहाँ जीते थे १०० साल अब उम्र अपनी ६० कर ली हैं ,
तो जीवन तो हर जगह तेज कर लिया, मगर अपने दिन भी तो उसी हिसाब से कम कर लिए हैं.
अब इसी को दुनिया बदलना कहते हैं , तो शायद दुनिया बदल बहुत गयी हैं ...