बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं , ऐसा नहीं की कुछ सोचा नहीं !
सोचने का क्रम तो हर वक्त चलता रहता हैं ,
ऐसा भी नहीं की कोई विषय नहीं मिला ,
विषय भी बहुत मिले और उन पर बहुत सोचा भी ,
मगर जब भी भावनाओ को उकेरना की बात आयी ,
कलम थोड़ी दूर जाकर रुक सी गयी !
लिखने को बहुत था मगर दिमाग में ठिठुरन सी लगी ,
राजनीती अब अवसरवादिता और आरोप -प्रत्यारोप तक सिमट कर रह गयी ,
सामाजिकता अब बस कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन के स्क्रीन में चिपक गयी ,
नैतिक मूल्य अब किताबो के पन्नो में ही रह गए हैं ,
प्यार -मोहब्बत - दोस्ती अब पैसे के तराज़ू में तुलने लगे हैं ,
कुछ अपना अनुभव लिखो तो आपसे समझदार बहुत हो गए हैं ,
कल्पना शक्ति रोज मर्रा की चीजो को सुलझाते सुलझाते दम तोड़ गयी हैं।
मगर अब भी उम्मीद नहीं खोयी हैं , हर रोज़ नए विषयो को फिर से सोचता हूँ
सोचता हूँ कुछ तो मिलेगा लिखने को, अपनी भावनाओ को शब्दों में पिरोने का,
इसी उम्मीद में हर समय कागज और कलम साथ रखता हूँ ,
क्या पता कहाँ और कैसे कोई विषय कुछ आकार ले ले ,
तब तक मैं भी थोड़ा बहुत अपनी रोज़मर्रा की चीजो का जुगाड़ कर लू.
( पढ़ते रहिये क्यूंकि ये कारवां जारी हैं ………………………)
सोचने का क्रम तो हर वक्त चलता रहता हैं ,
ऐसा भी नहीं की कोई विषय नहीं मिला ,
विषय भी बहुत मिले और उन पर बहुत सोचा भी ,
मगर जब भी भावनाओ को उकेरना की बात आयी ,
कलम थोड़ी दूर जाकर रुक सी गयी !
लिखने को बहुत था मगर दिमाग में ठिठुरन सी लगी ,
राजनीती अब अवसरवादिता और आरोप -प्रत्यारोप तक सिमट कर रह गयी ,
सामाजिकता अब बस कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन के स्क्रीन में चिपक गयी ,
नैतिक मूल्य अब किताबो के पन्नो में ही रह गए हैं ,
प्यार -मोहब्बत - दोस्ती अब पैसे के तराज़ू में तुलने लगे हैं ,
कुछ अपना अनुभव लिखो तो आपसे समझदार बहुत हो गए हैं ,
कल्पना शक्ति रोज मर्रा की चीजो को सुलझाते सुलझाते दम तोड़ गयी हैं।
मगर अब भी उम्मीद नहीं खोयी हैं , हर रोज़ नए विषयो को फिर से सोचता हूँ
सोचता हूँ कुछ तो मिलेगा लिखने को, अपनी भावनाओ को शब्दों में पिरोने का,
इसी उम्मीद में हर समय कागज और कलम साथ रखता हूँ ,
क्या पता कहाँ और कैसे कोई विषय कुछ आकार ले ले ,
तब तक मैं भी थोड़ा बहुत अपनी रोज़मर्रा की चीजो का जुगाड़ कर लू.
( पढ़ते रहिये क्यूंकि ये कारवां जारी हैं ………………………)