Tuesday, February 3, 2015

कुर्सी का खेल .......


बड़ा हो हल्ला हैं  गली गली , लॉउडस्पीकरो का जोर हैं !
आगे आगे हाथ जोड़े एक सज्जन , पीछे चेलो की रेल हैं !!

नूरा कुश्ती चालू हैं , लोकतंत्र का खेल हैं !
जिनको पहले चुना था , अब वो जेल हैं !!

वादो की झड़िया हैं , सपनो का संसार हैं !
हकीकत से कोई नहीं वास्ता , आम आदमी से किसको सरोकार हैं !!

कीचड उछालो  एक दूसरे  दामन में , उसकी कमीज मुझसे साफ़ क्यों हैं !
अजब रंग हैं राजनीति की , कल के दुश्मन आज यार हैं !!

वोटर बेचारा चुपचाप तमाशा देख रहा हैं !
वो हर एक की रग रग  से वाकिफ हैं !!

पानी , बिजली और रिहाइश की बस उसको दरकार हैं !
इन नेताओ को तो बस अपनी कुर्सी से प्यार हैं !!

चुनाव ख़त्म , जो जीत गया , वो भूल जाता हैं !
जो हार गया वो जनता को कोसता हैं !!

हारने जीतने वाले दोनों हर रोज  मिलते हैं !
"इस बार मैं , अगली बार तू" का राग अलापते हैं !!

जनता अपनी जुगत में लग जाती हैं !
हर रोज़ अपने नुमान्दो को खोजती हैं !!

ये आलिशान कारों और बंगलो के मौज लेते हैं !
वोटर को  कीड़ा समझते हैं !!

पांच साल बाद फिर से हाथ जोड़े खड़े हो जाते हैं !
भोली भाली जनता को फिर बेवकूफ बनाते हैं !!

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