Monday, November 2, 2015

इस शहर को ये क्या हो गया है ?


इस शहर को ये क्या हो गया है ? !
यूँ तो लाखो की तादाद हैं , मगर इंसान क्यों खो गया हैं ? !!
कंक्रीट के घर , कंक्रीट की सड़के , कंक्रीट के ही रास्ते !
मिट्टी की सुगंध का नामोनिशां मिट गया हैं !!
दिखावटी और मिलावटी सब कुछ लगता हैं यहाँ !
एक सच्ची मुस्कान को तरस गया हैं !!

इस शहर को ये क्या हो गया है ? !
हर कोई भाग रहा  हैं , पता नहीं कौन सी दौड़ में हिस्सा ले रहा हैं !
फुर्सत के पलो को तो जैसे ये शहर तरस गया हैं !!
किसी को किसी के लिए वक्त नहीं हैं यहाँ !
मासूम बचपन भी चारदीवारी में दम तोड़ रहा हैं !!
तौली जा रही हैं खुशियाँ यहाँ पैसे में !
जीवन का मतलब ही इंसान भूल गया हैं !!


इस शहर को ये क्या हो  गया है ? !
इंसान का इंसान से भरोसा उठता जा रहा !
हरेक इंसान दूसरे को शक की निगाह से देख रहा हैं !!
बिक रही हैं बाजारों में हर चीज़ !
इंसानियत का  कोई मोल नहीं रहा !!
हवाओ में घुल गया हैं एक अजीब सा जहर  !
घुट घुट कर इंसान जी रहा   !!
रिश्ते अब बस नाम के रह गए !
माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने का चलन बढ़ गया यहाँ !!

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