इस शहर को ये क्या हो गया है ? !
यूँ तो लाखो की तादाद
हैं , मगर इंसान क्यों खो गया हैं ? !!
कंक्रीट के घर , कंक्रीट
की सड़के , कंक्रीट के ही रास्ते !
मिट्टी की सुगंध का
नामोनिशां मिट गया हैं !!
दिखावटी और मिलावटी
सब कुछ लगता हैं यहाँ !
एक सच्ची मुस्कान को
तरस गया हैं !!
इस शहर को ये क्या हो गया है ? !
हर कोई भाग रहा हैं , पता नहीं कौन सी दौड़ में हिस्सा ले रहा हैं
!
फुर्सत के पलो को तो
जैसे ये शहर तरस गया हैं !!
किसी को किसी के लिए
वक्त नहीं हैं यहाँ !
मासूम बचपन भी चारदीवारी
में दम तोड़ रहा हैं !!
तौली जा रही हैं खुशियाँ
यहाँ पैसे में !
जीवन का मतलब ही इंसान
भूल गया हैं !!
इस शहर को ये क्या हो गया है ? !
इंसान का इंसान से
भरोसा उठता जा रहा !
हरेक इंसान दूसरे को
शक की निगाह से देख रहा हैं !!
बिक रही हैं बाजारों में हर चीज़ !
इंसानियत का
कोई मोल नहीं रहा !!
हवाओ में घुल गया हैं एक अजीब सा जहर
!
घुट घुट कर इंसान जी रहा !!
रिश्ते अब बस नाम के रह गए !
माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने का चलन बढ़ गया यहाँ !!
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