Monday, May 21, 2018

चिर विश्राम

बहुत दूर तक जाना चाहता हूँ ,
जब तक थक कर चूर न होऊं ,
तब तक चलना चाहता हूँ ,
तुझमे मिलने से पहले ,
मैं जीना चाहता हूँ। 

जीवन रस से भरा हुआ है ,
हर रस का स्वाद चखना चाहता हूँ ,
जीत -मिले या हार ,
हर अनुभव लेना चाहता हूँ। 

कितने रंग बिखरे पड़े है ,
हर रंग का मतलब अलग अलग,
मैं उन रंगो से ,
अपना एक इंद्रधनुष बनाना चाहता हूँ। 

अनंत आकाश , धरती विशाल
जानता हूँ पग  छोटे मेरे  ,
फिर भी जिद्द है मेरी ,
अपना एक संसार बनाना चाहता हूँ। 

सुख - दुःख आएंगे कितने ही ,
उनको हँस कर पार करूँगा  ,
चिर निद्रा में जाने से पहले ,
जीवन को एक नया अर्थ देना चाहता हूँ। 

मेरा प्रारब्ध तेरे हाथो में ,
हर जगह साये की तरह मेरे साथ तू ,
ये जीवन तेरी थाती है ,
तुझमे मिलने से पहले -अपने पदचिन्ह उकेरना चाहता हूँ। 

जानता हूँ किराये का ये जहाँ ,
मेहमान बनकर आया हूँ ,
क्या लाया -क्या पाया के दलदल से उभरने से पहले ,
जीवन के हर क्षण को जीना चाहता हूँ। 

कमियाँ बहुत है मुझमे ,
हर पल सीख है जीवन में ,
अपनी जय -पराजय का मैं खुद ,
साक्षी बनना चाहता हूँ। 

चिर -विश्राम से पहले ,
खुद को जीवन समर में ,
तन -मन और कर्म से ,
पूर्णत :झोंकना चाहता हूँ। 

तेरी कृति हूँ मैं ,
तुझमे ही समाना है ,
जीवन सत्य अटल , अडिग है ,
कुछ उपमान मैं  भी गढ़ना चाहता हूँ। 

इतना ज्ञान बिखरा पड़ा है ,
एक जीवन में समेट पाऊँ ,
संभव नहीं है ,
बस किसी किताब का एक पन्ना बनना चाहता हूँ। 

राग , द्वेष , क्रोध , मद, लालच , घमंड 
फैला रहा है अपनी जड़े
इन सबसे विरक्ति का ,
कोई मार्ग खोजना चाहता हूँ। 

रिश्ते - नाते मतलब खो रहे ,
स्वार्थ के पनपते बीजो के बीच,
किसी असहाय और निर्बल की ,
एक आस की किरण बनना चाहता हूँ। 

मानवता का  नित रोज़ पतन ,
उसूलो का बलिदान ,
मूल्यों की रक्षा के खातिर ,
शंखनाद करना चाहता हूँ। 

जानता हूँ मिटटी से बना मैं ,
मिट्टी में ही मिल जाऊँगा ,
किस बात का घमंड करूँ ,
कोई फूल उग सके, वो मिट्टी बनना चाहता हूँ। 

चिर विश्राम में जाने से पहले ,
धरती में आने के,
अपने प्रयोजन को ,
इति -सिद्धम करना चाहता हूँ।  

Friday, May 18, 2018

कारवाँ जारी है



जीवन अपनी गति से बढ़ रहा , 
कोई आगे - कोई पीछे चल  रहा ,
किसी के माथे पर थकन की शिकन , 
कोई मदमस्त गीत गुनगुना रहा , 
देखो !जीवन कारवाँ गुजर रहा।  

किसी को क्षितिज के उस पार की चिंता , 
कोई गुबार में उलझ रहा , 
किसी को सहारे की जरुरत , 
कोई अकेला ही चल रहा ,
देखो ! जीवन कारवाँ गुजर रहा।  

कही जेठ की धूप झुलसा रही , 
कहीं चाँद अपना अमृत बरसा रहा , 
बनते - बिगड़ते रिश्तो के बीच , 
प्रेम अपनी राह खुद बना रहा , 
देखो ! जीवन कारवाँ चल रहा।  

सब उम्मीदों को सहारा बनाकर , 
यादों की गठरी उठाकर , 
अपने सफर को यादगार बनाने की कशमकश में ,
चला जा रहा,
देखो ! जीवन कारवाँ चल रहा।  

किसी की ख्वाहिशें पनप रही , 
किसी को सफर लम्बा लग रहा , 
जो अँधेरे में भी साहस न छोड़े , 
उसका सफर आरामदायक कट रहा ,
देखो ! जीवन कारवाँ चल रहा।  

राहों में कही फूल बिखरे पड़े , 
कही काटों से भी पाला पड़ रहा , 
संतुलित होकर जो चल रहा , 
इस कारवाँ का आनंद वही ले रहा , 
देखो ! जीवन कारवाँ चल रहा।  

चलना अकेले ही है , कुछ साथ आ गए तो अच्छा है , 
कहकहे लगाते आगे बढ़ते रहिये ,
सुख -दुःख बाँटते हुए चलते रहिये, 
आपके पदचिन्हो पर वो देखो, 
कोई चल कर अब आगे बढ़ रहा , 
देखो ! जीवन कारवाँ चल रहा।