बहुत दूर तक जाना चाहता हूँ ,
जब तक थक कर चूर न होऊं ,
तब तक चलना चाहता हूँ ,
तुझमे मिलने से पहले ,
मैं जीना चाहता हूँ।
जीवन रस से भरा हुआ है ,
हर रस का स्वाद चखना चाहता हूँ ,
जीत -मिले या हार ,
हर अनुभव लेना चाहता हूँ।
कितने रंग बिखरे पड़े है ,
हर रंग का मतलब अलग अलग,
मैं उन रंगो से ,
अपना एक इंद्रधनुष बनाना चाहता हूँ।
अनंत आकाश , धरती विशाल
जानता हूँ पग छोटे मेरे ,
फिर भी जिद्द है मेरी ,
अपना एक संसार बनाना चाहता हूँ।
सुख - दुःख आएंगे कितने ही ,
उनको हँस कर पार करूँगा ,
चिर निद्रा में जाने से पहले ,
जीवन को एक नया अर्थ देना चाहता हूँ।
मेरा प्रारब्ध तेरे हाथो में ,
हर जगह साये की तरह मेरे साथ तू ,
ये जीवन तेरी थाती है ,
तुझमे मिलने से पहले -अपने पदचिन्ह उकेरना चाहता हूँ।
जानता हूँ किराये का ये जहाँ ,
मेहमान बनकर आया हूँ ,
क्या लाया -क्या पाया के दलदल से उभरने से पहले ,
जीवन के हर क्षण को जीना चाहता हूँ।
कमियाँ बहुत है मुझमे ,
हर पल सीख है जीवन में ,
अपनी जय -पराजय का मैं खुद ,
साक्षी बनना चाहता हूँ।
चिर -विश्राम से पहले ,
खुद को जीवन समर में ,
तन -मन और कर्म से ,
पूर्णत :झोंकना चाहता हूँ।
तेरी कृति हूँ मैं ,
तुझमे ही समाना है ,
जीवन सत्य अटल , अडिग है ,
कुछ उपमान मैं भी गढ़ना चाहता हूँ।
इतना ज्ञान बिखरा पड़ा है ,
एक जीवन में समेट पाऊँ ,
संभव नहीं है ,
बस किसी किताब का एक पन्ना बनना चाहता हूँ।
राग , द्वेष , क्रोध , मद, लालच , घमंड
फैला रहा है अपनी जड़े
इन सबसे विरक्ति का ,
कोई मार्ग खोजना चाहता हूँ।
रिश्ते - नाते मतलब खो रहे ,
स्वार्थ के पनपते बीजो के बीच,
किसी असहाय और निर्बल की ,
एक आस की किरण बनना चाहता हूँ।
मानवता का नित रोज़ पतन ,
उसूलो का बलिदान ,
मूल्यों की रक्षा के खातिर ,
शंखनाद करना चाहता हूँ।
जानता हूँ मिटटी से बना मैं ,
मिट्टी में ही मिल जाऊँगा ,
किस बात का घमंड करूँ ,
कोई फूल उग सके, वो मिट्टी बनना चाहता हूँ।
चिर विश्राम में जाने से पहले ,
धरती में आने के,
अपने प्रयोजन को ,
इति -सिद्धम करना चाहता हूँ।
जब तक थक कर चूर न होऊं ,
तब तक चलना चाहता हूँ ,
तुझमे मिलने से पहले ,
मैं जीना चाहता हूँ।
जीवन रस से भरा हुआ है ,
हर रस का स्वाद चखना चाहता हूँ ,
जीत -मिले या हार ,
हर अनुभव लेना चाहता हूँ।
कितने रंग बिखरे पड़े है ,
हर रंग का मतलब अलग अलग,
मैं उन रंगो से ,
अपना एक इंद्रधनुष बनाना चाहता हूँ।
अनंत आकाश , धरती विशाल
जानता हूँ पग छोटे मेरे ,
फिर भी जिद्द है मेरी ,
अपना एक संसार बनाना चाहता हूँ।
सुख - दुःख आएंगे कितने ही ,
उनको हँस कर पार करूँगा ,
चिर निद्रा में जाने से पहले ,
जीवन को एक नया अर्थ देना चाहता हूँ।
मेरा प्रारब्ध तेरे हाथो में ,
हर जगह साये की तरह मेरे साथ तू ,
ये जीवन तेरी थाती है ,
तुझमे मिलने से पहले -अपने पदचिन्ह उकेरना चाहता हूँ।
जानता हूँ किराये का ये जहाँ ,
मेहमान बनकर आया हूँ ,
क्या लाया -क्या पाया के दलदल से उभरने से पहले ,
जीवन के हर क्षण को जीना चाहता हूँ।
कमियाँ बहुत है मुझमे ,
हर पल सीख है जीवन में ,
अपनी जय -पराजय का मैं खुद ,
साक्षी बनना चाहता हूँ।
चिर -विश्राम से पहले ,
खुद को जीवन समर में ,
तन -मन और कर्म से ,
पूर्णत :झोंकना चाहता हूँ।
तेरी कृति हूँ मैं ,
तुझमे ही समाना है ,
जीवन सत्य अटल , अडिग है ,
कुछ उपमान मैं भी गढ़ना चाहता हूँ।
इतना ज्ञान बिखरा पड़ा है ,
एक जीवन में समेट पाऊँ ,
संभव नहीं है ,
बस किसी किताब का एक पन्ना बनना चाहता हूँ।
राग , द्वेष , क्रोध , मद, लालच , घमंड
फैला रहा है अपनी जड़े
इन सबसे विरक्ति का ,
कोई मार्ग खोजना चाहता हूँ।
रिश्ते - नाते मतलब खो रहे ,
स्वार्थ के पनपते बीजो के बीच,
किसी असहाय और निर्बल की ,
एक आस की किरण बनना चाहता हूँ।
मानवता का नित रोज़ पतन ,
उसूलो का बलिदान ,
मूल्यों की रक्षा के खातिर ,
शंखनाद करना चाहता हूँ।
जानता हूँ मिटटी से बना मैं ,
मिट्टी में ही मिल जाऊँगा ,
किस बात का घमंड करूँ ,
कोई फूल उग सके, वो मिट्टी बनना चाहता हूँ।
चिर विश्राम में जाने से पहले ,
धरती में आने के,
अपने प्रयोजन को ,
इति -सिद्धम करना चाहता हूँ।