जब सांझ आये जीवन की भगवन ,
बस इतनी कृपा हो ,
फक्र कर सकूं , सीना चौड़ा
जीवन पर अपने गर्व हो।
याद करूँ अपने जीवन पथ को ,
गर्व की अनुभूति हो ,
कर्मो के मेरे जीवन पथ पर ,
कही कोई सिसकी न हो।
याद करे अगर लोग तो ,
उनकी मधुर स्मृतियो में हो ,
ठेस पहुँचायी हो गर किसी को ,
वो भी भुलाने लायक हो।
बंद मुट्ठी बाँधे जन्मा था ,
खाली हाथ ही जाना है ,
जीवनपथ का पथिक निरंतर ,
तुझ पर कभी संशय न हो।
क्या हारा , क्या जीता
क्या खोया , क्या पाया
जीवन इससे उन्मुक्त ,
अपने जीवन पथ पर गर्व हो।
जीवन की उस साँझ में ,
शांति और सुकून हो ,
जीवन जो दिया तूने ,
"भरपूर जीये"- तसल्ली हो।
छायाचित्र आभार - गूगल