Friday, September 13, 2019

अमावस की रात और कुछ जुगनू




वो अमावस की रात ,
जितना कालिख अपने में समेट सकती थी ,
समेटे , कितनी काली थी। 

दूर कृत्रिम  रोशनी  के जलते चिराग भी ,
जैसे अपनी रौशनी को अपने तक ही ,
समेटे , जुगनू से भी फीके थे। 

चाँद को भी जैसे आगोश में लेकर ,
तारो की चमक भी सोखकर ,
वो रात , सचमुच , भयानक अमावस की रात थी। 

मगर कुछ जुगनू अपनी ज़िद्द पर अड़े थे ,
मंडरा कर इधर उधर , बिना डर के ,
वो इस भयानक " अमावस " रात को चिड़ा रहे थे। 


बड़े जिद्दी और जुनूनी ये जुगनू ,
अपने अस्तित्व को दाँव पर लगाकर  ,
पहली किरण आने तक डटे रहने पर अड़े थे।  

Wednesday, September 11, 2019

प्रेम की सीढ़ी



आईने में खुद को सज धज कर निहारती ,
उसकी आँखों में जैसे अजब सा सुकून था ,
झील सी आँखों के ऊपर उसने ,
काजल से जैसे तटबंध बनाये थे ,
गेसुओं को करीने से पीछे बाँध कर ,
महक लिए कुछ फूल गुँथे थे ,
गालो पर हल्का हल्का ,
गुलाबी मस्कारा लगाया था ,
खुद से आईने के सामने ,
शर्मा रही थी  ,
बड़े दिनों से सजने की ,
तमन्ना को जिये जा रही थी ,
किसी दूसरे से प्रेम करने से पहले ,
खुद से प्रेम करना सीख रही थी । 

उसे आज किसी और के लिए नहीं ,
खुद के लिए सज रही थी ,
बदल बदल कर कपडे वो ,
हर रंग के साथ निखर रही थी ,
खुद से अपने चेहरे पर ,
एक काला टीका भी लगा लिया ,
नजर न लग जाए खुद की ,
चेहरा सुर्ख गुलाबी  हो गया।  
खुद से प्रेम हो रहा था उसे ,
आज वो जैसे पूर्ण हो रही थी,
प्रेम की सीढ़ी जैसे ,
आज वह चढ़ रही थी ।

फोटो सौजन्य और आभार - गूगल 

Monday, September 9, 2019

लिखने के लिए ये दौर कठिन है


लिखने के लिए ये दौर कठिन है ,
मन की लिखूँ तो ,
मनगढंत ,
सच लिखूँ ,
किसको इसकी फिक्र है ,
लिखने के लिए ये दौर कठिन है। 

चाटुकारिता करूँ ,
वाहवाही है ,
विरोध लिखूँ तो ,
तन्हाई है ,
प्यार लिखूँ तो ,
कहा अब वो गहराई है ,
रिश्तो में ,
कहा अब वो सच्चाई है ,
लिखने के लिए ये दौर कठिन है। 

फलसफों में कोई दम नहीं ,
पाखंडियो ने दूकान सजाई है ,
मानवता पर लिखने वालो ने ,
हालातो की सजा पाई है ,
शब्द भी अमर्यादित अब ,
वजूद से खोने लगे है ,
पढ़ने वाले भी अब ,
अपने हिसाब से पढ़ने लगे है ,
बिकने लगी है कलम ,
शब्द भी छल करने लगे है ,
सच्चे कलमकार ,
चुप रहने लगे है ,
लिखने के लिए ये दौर कठिन है।