Monday, March 22, 2021

मेरा यार अब शहर हो रहा है

 

अंदर से अकेला बाहर शोर से घिरा

दिल में कुछ सुकून की तलाश ,

बेहताशा भीड़ में भाग रहा है ,

धीरे धीरे ही सही निखर रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है।  

 

लेकर हसरतो का पुलिंदा वो ,

बहती नदी सा थम रहा है ,

आजाद फिजायें दम घुट रहा है,

कदम दर कदम बढ़ रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है।

 

हैं कुछ शुरुवाती चिन्ताएँ ,

सबब, धीरे धीरे ढल रहा है ,

फ़ीके से रँगो में उसके ,

चटकीला रंग चढ़ रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है।

 

भूल कर वो अब पुरानी यादें ,

एक नयी यात्रा पर निकला है ,

इक छोटे से कुँए से अब ,

कश्ती लेकर समंदर में उतर रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है।

 

लौटना तो चाहता है इस बियाबाँ से ,

गिरफ्त से इसके अब छूटना मुश्किल है,

दोराहे पर खड़ी ज़िन्दगी,

आदी होकर हवाले हो रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है। 


Friday, March 12, 2021

ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना

जंगल के बीचोबीच  ,

बाँज के पेड़ के नीचे ,

छाँव में ,

बैठकर ,

एक सूखी रोटी का निवाला ,

एक गुड़ की डली ,

मुँह में डालकर ,

वो देख रहा था ,

अपनी बकरियों को चरते ,

जो पूरे पहाड़ में टिमटिमा सी रही थी ,

पूरी दुनिया से बेखबर वो ,

पुराने से रेडियो में ,

आज के जमाने में ,

विविध भारती का ,

दोपहर का फरमाइशी कार्यक्रम ,

सुन रहा था ,

और बाकी दुनिया ,

कोरोना के डर ,

से दुबकी पड़ी थी ,

अपनी चारदीवारी के अंदर ,

बाहर जाने से कतरा रही थी ,

दो गज की दुरी ,

मास्क है जरुरी,

में पक चुकी थी ,

और वो मस्त मलंग ,

अपनी दुनिया में ,

अलमस्त ,

रेडियो पर उस वीराने में ,

मुरादाबाद के एक श्रोता की फरमाइश पर  ,

किशोर कुमार की आवाज में ,

अंदाज फिल्म से ,

शंकर जयकिशन का स्वरबद्ध ,

" ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना ,

यहाँ कल क्या हो , किसने जाना ?"

गीत सुन रहा था।