अंदर से अकेला बाहर शोर से घिरा
दिल में कुछ सुकून की तलाश ,
बेहताशा भीड़ में भाग रहा है ,
धीरे धीरे ही सही निखर रहा है ,
मेरा यार अब शहर हो रहा है।
लेकर हसरतो का पुलिंदा वो ,
बहती नदी सा थम रहा है ,
आजाद फिजायें दम घुट रहा है,
कदम दर कदम बढ़ रहा है ,
मेरा यार अब शहर हो रहा है।
हैं कुछ शुरुवाती चिन्ताएँ ,
सबब, धीरे धीरे ढल रहा है ,
फ़ीके से रँगो में उसके ,
चटकीला रंग चढ़ रहा है ,
मेरा यार अब शहर हो रहा है।
भूल कर वो अब पुरानी यादें ,
एक नयी यात्रा पर निकला है ,
इक छोटे से कुँए से अब ,
कश्ती लेकर समंदर में उतर रहा है ,
मेरा यार अब शहर हो रहा है।
लौटना तो चाहता है इस बियाबाँ से ,
गिरफ्त से इसके अब छूटना मुश्किल है,
दोराहे पर खड़ी ज़िन्दगी,
आदी होकर हवाले हो रहा है ,
मेरा यार अब शहर हो रहा है।