जंगल के बीचोबीच ,
बाँज के पेड़ के नीचे ,
छाँव में ,
बैठकर ,
एक सूखी रोटी का निवाला ,
एक गुड़ की डली ,
मुँह में डालकर ,
वो देख रहा था ,
अपनी बकरियों को चरते ,
जो पूरे पहाड़ में टिमटिमा सी रही थी ,
पूरी दुनिया से बेखबर वो ,
पुराने से रेडियो में ,
आज के जमाने में ,
विविध भारती का ,
दोपहर का फरमाइशी कार्यक्रम ,
सुन रहा था ,
और बाकी दुनिया ,
कोरोना के डर ,
से दुबकी पड़ी थी ,
अपनी चारदीवारी के अंदर ,
बाहर जाने से कतरा रही थी ,
दो गज की दुरी ,
मास्क है जरुरी,
में पक चुकी थी ,
और वो मस्त मलंग ,
अपनी दुनिया में ,
अलमस्त ,
रेडियो पर उस वीराने में ,
मुरादाबाद के एक श्रोता की फरमाइश पर
,
किशोर कुमार की आवाज में ,
अंदाज फिल्म से ,
शंकर जयकिशन का स्वरबद्ध ,
" ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना ,
यहाँ कल क्या हो , किसने जाना ?"
गीत सुन रहा था।
जितने भी दुनियादारी के झमेले और मेले होंगे उतनी मुसीबत होगी, बस दो रोटी की जुगाड़ वाले ऐसे ही मस्त रहते हैं
ReplyDeleteबहुत सही
Bahut badiya
ReplyDeleteèk ek pankti me maja aa gaya
ReplyDeleteBahut badiya
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