आँकड़े दर्द बयाँ नहीं करते ,
वो सिर्फ सँख्या बताते है ,
सँख्या सिर्फ गणित का हिस्सा है,
कम -ज्यादा से किसी के गुनाह नहीं छिपते।
आँकड़े पूरा सच कभी नहीं कहते,
छुपाये भी जा सकते है ,
और बढ़ाये भी जा सकते है ,
संख्या से सुख दुख कभी नहीं मापे जा सकते।
मगर सरकारें अपनी सफलता विफलता ,
इन्ही आँकड़ो से नापती है ,
नफा नुकसान का आँकलन करती है और ,
हर बार आँकड़ो के खेल में वही जीतती है।
आँकड़ो का यह खेल ,
हर बार छुपा ले जाता है ,
अपने अंदर लाखो सिसकियाँ ,
मजबूरी, लाचारी और लापरवाहियाँ।