Wednesday, November 24, 2021

बेतरतीब ज़िन्दगी

 बड़ी बेतरतीब है ज़िन्दगी न जाने कितने पैबंद है।  

उम्मीद के धागों से न जाने कितने रफ़ू करने है।। 


दिल के दरख्त स्याह हो चले है अब।  

रोशनी का इन्तजार न जाने कब से है।।


यूँ तो कट ही जाएगी ये उम्र तमाम " आनन्द " । 

कुछ नायाब पलों के इन्तजार में ज़िन्दगी कब से है।।


कसूर ज़िंदगी का नहीं है इसमें ,रोज़ जगाती रही।  

एक दौड़ में हमारी सनक हमें बस भगाती  रही ।।


पता है कुछ नहीं मिलने वाला है उस पार जाकर भी। 

जी लेता कुछ पल जी भर कर यही भूल सताती रही।।




Monday, November 8, 2021

बुराँश के फूल

 



सबके लिये अलग -अलग है ,

ये "बुराँश के फूल ",

किसी के लिए बचपन की यादें ,

किसी के लिए सूर्ख़ लाल फ़ूल ,

किसी के लिये प्रणय निवेदन ,

किसी को अक्स दिखाता ये फूल। 

 

किसी धार के भ्योह में खिलता ,

सबको ललचाता है ये फूल ,

खुद तक पहुँचने के लिये ,

संघर्ष कराते ये " बुराँश के फूल ",

चटक धूप में रंग बिखेरते ,

सबसे अलहदा है ये "बुराँश के फूल " ।

 

किसी विरहन को अपने से लगते ,

किसी के लिए चूसने वाले फूल 

कोई पंखुड़ियों से खेल खेले ,

रोगियों के लिए औषधि है ये फूल,

सबके लिये अलग -अलग है ,

ये अलबेले  "बुराँश के फूल " ।