मैं इक पत्थर था ,
किनारे से
सटा था ,
इक दिन तुम
नदी बनकर आयी ,
मुझे अपने साथ बहा ले गयी ,
मैं बहता रहा
तुम्हारे साथ ,
बहुत दूर तक
,
फिर एक घुमाव
पर ,
तुमने मुझे
फिर किनारे लगा दिया ,
तब से मैं
वही पड़ा हूँ ,
इस उम्मीद
में कि ,
इक दिन फिर
बरसात होगी ,
और तुम फिर
,
बहा ले जाओगी
मुझे ,
अपने साथ
,
और इस बार
,
हम दोनों पहुंचेंगे
,
साथ अपने गंतव्य
स्थान।
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