बायें पैर ने दायें पैर से शिकायत की ,
हर बार चलने के लिए तुम ही क्यों उठते हो ?
मैं भी तो शुरुवात कर सकता हूँ ,
मुझे हर बार तुम्हारे पीछे ही क्यों लगना पड़ता है ?
दायें पैर ने शांत स्वर में समझाते हुए कहा ,
" पगले , तुम्हारे ऊपर दिल का भार है ,
तुम्हारी ख्वाईश को पूरा करने के लिये ,
तुम्हे संकोच न रहे ,मैं पहल कर लेता हूँ,
नाराजगी छोड़ , तैयार हो जा ,
चल , दोनों दिल को कही घुमा लाते है। "