ज़िन्दगी " मदारी " है , हम " जमूरे " ,
वक्त "डमरू" है , परिस्थितियाँ " धुन " है,
बजना तय है - "नाचना" तो पड़ेगा ही ,
ज़िंदा रहने के लिये "थिरकना" जरुरी है।
"थिरकन" तय करेगी रास्ता हमारा ,
अक्सर "रास्ते" कहाँ सरल होते है ,
"सरल" अगर सब कुछ होता यहाँ ,
"गुलाब " के साथ काँटे नहीं उगते।
"काँटे" संघर्ष है , जीवटता है ,
"गुलाब " कामयाबी की दास्तां ,
उगने, पनपने और खिलने का सफ़र ,
धुन पर नाचते रहने का है परिणाम।
Ati sundar panktiya
ReplyDeleteVery very Good
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