अपने पापा की किसी बात पर दादी को रोते हुए देखकर,
पोता अपनी दादी के पास गया और बोला,
"दादी ! आपको पापा ने क्यूँ डाटा?
मम्मी तो रोज़ पापा से झगड़ती रहती हैं,
एक के बाद एक गलती करती हैं,
उनको तो पापा नहीं डाटते?"
दादी ने जवाब दिया
" बेटा, तेरी मम्मी पड़ी लिखी, समझदार हैं,
तेरे पापा उसपर तो गुस्सा नहीं होते हैं,
सारी भड़ास मुझ पर निकाल देते हैं.
मैं फिर भी उससे नाराज़ नहीं होती
क्यूंकि वो मेरा बेटा हैं
हर माँ की नियति यही हैं,
पाला पोसा बेटा एक दिन किसी को सौंप देना हैं,
और फिर यु ही घुट घुट कर जीना हैं."
निकल पड़ा हूँ लेखन यात्रा में , लिए शब्दों का पिटारा ! भावनाओ की स्याही हैं , कलम ही मेरा सहारा !!
Monday, May 17, 2010
Saturday, May 15, 2010
कब आओगे ..........
(पाठको के अनुरोध पर अपनी ही पुरानी रचना को फिर से पोस्ट कर रहा हूँ. )
उसका आँगन गूजता था बच्चों के शोर से , वो दोड़ती थी बच्चों के पीछे
शोर से आसमान गूजता था .
बच्चों के साथ उस माँ का वक़्त यु ही गुजरता था,
माँ सोचती थी कब बच्चे बड़े होंगे और उसके सपने भी पूरे होंगे !
सोचते सोचते बच्चे कब बड़े हुए, उसको भी पता ना चला,
एक - एक कर सब निकल गए घर से एक दिन, उसका आँगन सूनसान हुआ!
आज वो संभालती है हर याद को , निहारती हैं अपनी दीवारों को,
तलाशती हैं हर जगह को जहाँ से उसके बच्चों की यादे जुडी पड़ी हैं.
वो यादों के सहारे ही आँखों के आँसू पीकर चुपचाप ज़माने से लड़ती हैं.
आती हैं कोई खबर दूर परदेश से बच्चों की तो आसूँ छलका देती हैं !
रात को सोने से पहले हर रोज़ प्राथना करती हैं ,
ना परेशां हो मेरे बच्चे, अपने बच्चों के बिछुडन का दर्द सहती हैं.
करती हैं कभी सवाल ज़िन्दगी से , फिर खामोश हो जाती हैं.
नियति को यही था मंजूर , पल्लू ढाके सो लेती हैं.
लगाती हैं जब हिसाब किताब ज़िन्दगी का, खोने का पलडा भारी पाती हैं.
हर रोज़ फिर आस में जीती हैं, उसके बिछड़े एक दिन तो आयेंगे.
काश कुछ ऐसा कर दे भगवान ,किल्कारिया फिर सुना दे भगवान, भर दे फिर उसका आँगन,
अब जहाँ सूनेपन की आवाज़ भी सुनाई देती हैं.
वो बुडी माँ का दर्द ना जाने भगवान भी नहीं सुनता हैं,
वो पथराई आँखों से आज भी हर जगह अपने बच्चों के निशान खोजती हैं.
बच्चे जब तक दर्द समझे , वो बिछुरन की आदी हो जाती हैं.
अब उसको कोई दर्द नहीं सालता , वो बैरागी हो जाती हैं.
मत करना भगवान किसी माँ को उसको बच्चों से दूर,ये सजा जीते जी मरने की हैं,
तेरा रूप हैं वो धरती पर , ये सजा हरगिज मंजूर नहीं हैं.
उसका आँगन गूजता था बच्चों के शोर से , वो दोड़ती थी बच्चों के पीछे
शोर से आसमान गूजता था .
बच्चों के साथ उस माँ का वक़्त यु ही गुजरता था,
माँ सोचती थी कब बच्चे बड़े होंगे और उसके सपने भी पूरे होंगे !
सोचते सोचते बच्चे कब बड़े हुए, उसको भी पता ना चला,
एक - एक कर सब निकल गए घर से एक दिन, उसका आँगन सूनसान हुआ!
आज वो संभालती है हर याद को , निहारती हैं अपनी दीवारों को,
तलाशती हैं हर जगह को जहाँ से उसके बच्चों की यादे जुडी पड़ी हैं.
वो यादों के सहारे ही आँखों के आँसू पीकर चुपचाप ज़माने से लड़ती हैं.
आती हैं कोई खबर दूर परदेश से बच्चों की तो आसूँ छलका देती हैं !
रात को सोने से पहले हर रोज़ प्राथना करती हैं ,
ना परेशां हो मेरे बच्चे, अपने बच्चों के बिछुडन का दर्द सहती हैं.
करती हैं कभी सवाल ज़िन्दगी से , फिर खामोश हो जाती हैं.
नियति को यही था मंजूर , पल्लू ढाके सो लेती हैं.
लगाती हैं जब हिसाब किताब ज़िन्दगी का, खोने का पलडा भारी पाती हैं.
हर रोज़ फिर आस में जीती हैं, उसके बिछड़े एक दिन तो आयेंगे.
काश कुछ ऐसा कर दे भगवान ,किल्कारिया फिर सुना दे भगवान, भर दे फिर उसका आँगन,
अब जहाँ सूनेपन की आवाज़ भी सुनाई देती हैं.
वो बुडी माँ का दर्द ना जाने भगवान भी नहीं सुनता हैं,
वो पथराई आँखों से आज भी हर जगह अपने बच्चों के निशान खोजती हैं.
बच्चे जब तक दर्द समझे , वो बिछुरन की आदी हो जाती हैं.
अब उसको कोई दर्द नहीं सालता , वो बैरागी हो जाती हैं.
मत करना भगवान किसी माँ को उसको बच्चों से दूर,ये सजा जीते जी मरने की हैं,
तेरा रूप हैं वो धरती पर , ये सजा हरगिज मंजूर नहीं हैं.
Friday, May 14, 2010
कुछ दिन .........................
कभी हालात ऐसे हो जाते हैं,
शब्द भी बयान करने के लिए छोटे हो जाते हैं,
दिमाग भी कुछ सोचने के लिए मना कर देता हैं,
दुनिया भी कुछ परायी सी लगने लगती हैं,
सब कुछ उलझा उलझा सा,
ज़िन्दगी अपनी होकर भी अपनी नहीं लगने लगती हैं.
तब कुछ इस तरह से दिल से आवाज़ आती हैं,
ऐ खुदा, क्यूँ मेरे साथ ये सब हो रहा हैं,
खुदा जवाब देता हैं - सब्र कर,
तेरे जो अच्छे दिन आने वाले हैं,
उसकी अहमियत को समझाने को कुछ दिन ऐसे भी बिताने पड़ेगे,
समय हमेशा एक सा नहीं रहता,
बस उसी को समझाने के लिए ये वक़्त भी जरुरी हैं.
शब्द भी बयान करने के लिए छोटे हो जाते हैं,
दिमाग भी कुछ सोचने के लिए मना कर देता हैं,
दुनिया भी कुछ परायी सी लगने लगती हैं,
सब कुछ उलझा उलझा सा,
ज़िन्दगी अपनी होकर भी अपनी नहीं लगने लगती हैं.
तब कुछ इस तरह से दिल से आवाज़ आती हैं,
ऐ खुदा, क्यूँ मेरे साथ ये सब हो रहा हैं,
खुदा जवाब देता हैं - सब्र कर,
तेरे जो अच्छे दिन आने वाले हैं,
उसकी अहमियत को समझाने को कुछ दिन ऐसे भी बिताने पड़ेगे,
समय हमेशा एक सा नहीं रहता,
बस उसी को समझाने के लिए ये वक़्त भी जरुरी हैं.
Thursday, May 6, 2010
One thought which keeps me positive everyday...............
"ज़िन्दगी में महत्वपूर्ण यह नहीं हैं की आज हम कहाँ पर खड़े हैं, महत्वपूर्ण यह हैं की हमारे आज के प्रयास हमें किस दिशा में ले जा रहें हैं क्यूंकि हमारा आज , हमारे बीते हुए कल की देन हैं जो हम अब बदल नहीं सकते और हमारा आने वाला कल हमारे आज की देन होगा. आज से ही जागिये और आने वाले कल के बारे में सोचिये की हमें कहाँ जाना हैं और हमारी मंजिल क्या हैं? "
"This is not very much important that where we are today , but this is very important that in which direction our today's efforts are aligning because our tommorrow will be the result of our today and our today is the result of our yesterday. Forget what happened in the past, awake today and start doing the things to make your tommorrow."
"This is not very much important that where we are today , but this is very important that in which direction our today's efforts are aligning because our tommorrow will be the result of our today and our today is the result of our yesterday. Forget what happened in the past, awake today and start doing the things to make your tommorrow."
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