(पाठको के अनुरोध पर अपनी ही पुरानी रचना को फिर से पोस्ट कर रहा हूँ. )
उसका आँगन गूजता था बच्चों के शोर से , वो दोड़ती थी बच्चों के पीछे
शोर से आसमान गूजता था .
बच्चों के साथ उस माँ का वक़्त यु ही गुजरता था,
माँ सोचती थी कब बच्चे बड़े होंगे और उसके सपने भी पूरे होंगे !
सोचते सोचते बच्चे कब बड़े हुए, उसको भी पता ना चला,
एक - एक कर सब निकल गए घर से एक दिन, उसका आँगन सूनसान हुआ!
आज वो संभालती है हर याद को , निहारती हैं अपनी दीवारों को,
तलाशती हैं हर जगह को जहाँ से उसके बच्चों की यादे जुडी पड़ी हैं.
वो यादों के सहारे ही आँखों के आँसू पीकर चुपचाप ज़माने से लड़ती हैं.
आती हैं कोई खबर दूर परदेश से बच्चों की तो आसूँ छलका देती हैं !
रात को सोने से पहले हर रोज़ प्राथना करती हैं ,
ना परेशां हो मेरे बच्चे, अपने बच्चों के बिछुडन का दर्द सहती हैं.
करती हैं कभी सवाल ज़िन्दगी से , फिर खामोश हो जाती हैं.
नियति को यही था मंजूर , पल्लू ढाके सो लेती हैं.
लगाती हैं जब हिसाब किताब ज़िन्दगी का, खोने का पलडा भारी पाती हैं.
हर रोज़ फिर आस में जीती हैं, उसके बिछड़े एक दिन तो आयेंगे.
काश कुछ ऐसा कर दे भगवान ,किल्कारिया फिर सुना दे भगवान, भर दे फिर उसका आँगन,
अब जहाँ सूनेपन की आवाज़ भी सुनाई देती हैं.
वो बुडी माँ का दर्द ना जाने भगवान भी नहीं सुनता हैं,
वो पथराई आँखों से आज भी हर जगह अपने बच्चों के निशान खोजती हैं.
बच्चे जब तक दर्द समझे , वो बिछुरन की आदी हो जाती हैं.
अब उसको कोई दर्द नहीं सालता , वो बैरागी हो जाती हैं.
मत करना भगवान किसी माँ को उसको बच्चों से दूर,ये सजा जीते जी मरने की हैं,
तेरा रूप हैं वो धरती पर , ये सजा हरगिज मंजूर नहीं हैं.
aapki yah kavita to dil ko har us insan ko bhauk kar degi jo ki lambe samay se apni maa se dur rah rahe hai, bahut sunder kavita likhi hai aapne, dil khush ho gaya, dhanyabad
ReplyDeletetheek isee tarah likhte rahiye, har padhne wale ka man jarur bhauk ho jayga.
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletesach main padkar rona aa gaya.
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