" इच्छा का कोई अंत नहीं,
थोड़े से अब किसी का पेट भरता नहीं,
जो कुछ हैं उसमे अब किसी को संतोष नहीं,
और ज्यादा , ज्यादा की इस दौड़ का कही कोइ अंत नहीं.
जो हैं शायद वो कम हैं , और चाहिए !
मगर कितना चाहिए किसी को इसका पता नहीं.
सबकी की परेशानियों का शायद मूल यही.
और......... और......की इस अंधी दौड़ में,
ज़िन्दगी हर वक़्त सिसकती रही. "
सटीक लिखा है...सुन्दर भाव
ReplyDeletereally very nice poem and its true...
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