इस शहर में कुछ तो बात हैं,
हर बेगाना भी इससे प्यार करता हैं,
छोड़ के जब आया था इस शहर अपने गाँव को,
वादा किया था जल्दी ही छोड़ दूंगा इस शहर को,
मगर दिल्ली शहर की बात ही कुछ निराली निकली,
इससे दस सालो में इतना प्यार हुआ की,
बीस साल पुराने अपने गाँव शहर की यादे धुंधला गयी,
कहते हैं आज दिल्ली को राजधानी बने १०० साल हो गए हैं,
आज के ही दिन १९११ में जोर्जे पंचम की ताजपोशी हुई थी,
दिल्ली दरबार लगा था दिल्ली में, इसकी शान और बड़ी थी,
इतिहास को थोडा खंगाला तो दिल्ली को कुछ करीब से जाना,
कितनी बार उजड़ कर फिर से दिल्ली खडी हुई थी,
जो भी आया लूट खसोट कर ले गया,
दिल्ली अपने गम चुपचाप सहती रही,
हर बार फिर बसी फिर से न ख़त्म होने के लिए,
यमुना के तीरे तीरे बसी मेरी दिल्ली ,
न जाने कितनी बार रोती बिलखती रही,
मगर आज गर्व हैं मुझे इस दिल्ली पर,
इसकी शानो शौकत पर,
जता दिया दिल्ली ने दुनिया को,
दिलवालों की हैं ये दिल्ली, आओ तो स्वागत करेंगे
चले भी जाओगे यहाँ से अगर कभी,
इसे कभी न भूल पाओगे.
न जाने कितने सल्तनते देखी, कितने राजाओ की दुन्दुभी सुनी,
दिल्ली यु ही चुपचाप चलती रही.
यमुना के तीरे तीरे अपने को रचते बसते ,
सबको कुछ न कुछ देते हुई,
दिल्ली अब जाकर कुछ शांत हुई.
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