इतेफाक से मिली ये ज़िन्दगी ,
कही इतेफाक ही बन कर न रह जाये,
कुछ तो करे ऐसा ,
की हमारा भी नाम हो जाये.
जीते तो हैं करोडो दुनिया में,
चंद नाम ही याद रह जाये.
अपने लिये ही जीए तो क्या जीए,
की दो पीदियो के बाद ही अपने हमें कोस जाए,
लिख इबारत कुछ ऐसी की,
जैसे पत्थर पर लकीर बन जाये.
पैसा कमा, ऐश कर- सब कुछ ठीक हैं,
ज़माने के लिए क्या कर गया बस यही याद रह जाये.
thanx....friend
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