अजीब कशमकश हैं ज़िन्दगी की,
हम जब कुछ करते हैं,
लोग कहते हैं ये देखो उसने कर दिया,
कुछ नहीं करते तो लोग कहते हैं,
अरे........वो तो कुछ नहीं करता.
उलझन ज़माने की ये बड़ी हैं,
उसे अपने दुःख -सुख से ज्यादा फर्क ,
इस बात पर पड़ता हैं उसने ऐसा कर दिया.
कोई उन्हें ये समझाओ ,
वो जो कुछ नहीं करता ,
उससे उसका ही बिगड़ना हैं,
और वो जो कुछ करता हैं,
उससे उसका ही सुधरना हैं,
फिर क्यूँ बेवजह दुसरो की बातो में उलझा जाये,
अपने ही दुखो को कुछ कम कर लिए जाये,
या फिर अपने सुखो को और थोडा जीया जाये.
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