Wednesday, April 25, 2012

हम कौन हैं ?.....................


हम कौन हैं ?.....................
एक अनजान सफ़र जिसे हम ज़िन्दगी कहते हैं , 
पर चलने वाले मुसाफिर ...........
कहाँ मंजिल और कहाँ पड़ाव , 
सब बातो से अनजान , 
समय की लहरें कुछ हमारे हिसाब से चलती , 
और कुछ हमें चलाती हुई, 
बढ रहा हैं हमारा ये सफ़र. 
हम अपनी गठरी में बांधे , 
कुछ अच्छे और कुछ खट्टे पल, 
बड़ते चलते कभी सीधे , कभी लड़खड़ाते, 
कभी हंसते , कभी रोते 
कभी फक्र करते , कभी कोसते ...
सोचिये ...... ये अनजान सफ़र बड़ा हसीन हैं, 
धीरे धीरे पार होता चला जाता हैं , 
लाख रोके इसे कहीं पर,   
मगर ये ठहरता नहीं हैं बस आगे बढता चला जाता हैं ............................
क्यूंकि पड़ाव तो सिर्फ अल्प विराम हैं इसके लिए, 
विराम चिन्ह से पहले तो बहुत लम्बा सफ़र तय करना हैं. 

Monday, April 16, 2012

क्या शिकायत करू खुदा से ......उसने तो सब कुछ दिया

क्या शिकायत करू खुदा से ......उसने तो सब कुछ दिया ,
इंसान बना कर उसने सबसे पहले मुझ पर एहसान किया, 
दो हाथ , दो कान , दो पैर , दो आँखे  सब कुछ तो सलामत दिया, 
फिर ऊपर से एक सोचने वाला दिमाग देकर मुझे संपूर्ण तो बनाया, 
इन चीजों की एहमियत क्या हैं ज़िन्दगी में , 
जरा इनमे से किसी को हटा के सोचो अपनी ज़िन्दगी में , 
फिर अब मैं खुदा से और क्या मांगू, 
करने के लिए उसने मुझे इतना बड़ा जहाँ तो दिया , 
अब कुछ नहीं कर पाता हूँ तो उसमे उसका क्या कसूर , 
अपना ही शायद रास्तो से भटका होऊंगा, 
उसके ऊपर , फिर भी गाहे बगाहे कभी परेशान होता हूँ, 
तो वो परेशानियों से निकाल  ही  देता हैं , 
हर रोज़ वो मुझे एक नया दिन देता हैं, 
कुछ करने के लिए, अब मैं उसे व्यर्थ गवां देता हूँ तो उसमे उसका क्या, 
उसकी बनायीं दुनिया को कुछ सुधार सकूं , मुझे इसके लिए फुर्सत कहाँ, 
बदले में मैं क्या करता हूँ, 
कभी कभार नाम जप लेता हूँ, जरा ज्यादा हुआ तो मंदिर हो आता हूँ. 
अब और क्या मांगू खुदा से .... उसने तो सब कुछ दिया....

Monday, April 2, 2012

मेरी कविताये .........

कभी सोचता हूँ कविताये लिखना बंद कर देता हूँ, 
कौन पढता  हैं अब यहाँ, न छंद हैं उनमे , न ढंग की कोई तुकबंदी ,
किसके पास समय हैं अब हमारी इन कविताओ को पढने  का,  
फुर्सत के चंद लम्हे मिलते ही कहाँ हैं, 
इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में , 
ऊपर से इन कविताओ का मर्म समझने को, 
दिमाग में बेफिजूल बोझ देने का, 
लेकिन फिर मन नहीं मानता , 
कभी कभार फिर बैठ ही जाता हूँ, 
कागजो को कुछ काला नीला करने को, 
कुछ बन पड़ा तो अपलोड कर देता हूँ, 
नहीं तो कागज को  हवाई जहाज बना कर, 
बिटिया के साथ घर की बालकोनी से उड़ा देता हूँ. 
फिर भी उम्मीद बंधी हैं, 
क्या पता कब कोई इन्टरनेट खोल के पढ़ेगा मेरी कविताये, 
वैसे पता हैं इन्टरनेट में उसके पास मेरी कविताओ को पड़ने से ज्यादा और जरूरी काम हैं, 
मेरे कविताओ के पन्ने जिन्हें मैंने जहाज बना के उड़ा दिए हैं, 
उठा के पढने की जहमत ही शायद को उठाएगा, 
किताब बना कर छपवा भी दू तो क्या होगा, 
लोग चेतन भगत को पढने ज्यादा पसंद करेंगे, 
मेरी कविताओ से क्या फायदा होने वाला. 
मगर मैं अपने भावनाओ  को यूँ ही गाहे बगाहे ,
शब्दों का आकार देता रहूँगा .........
क्यूंकि ये मन मुझे बैचैन करता रहता हैं, 
 कुछ लिखूं नहीं तो सोने नहीं देता हैं, 
पढ़ते रहिये , अच्छा लगे तो कभी कभी कोमेंट देते रहिएगा , 
वर्ना मैं तो लगा ही रहूँगा, 
आदत हैं मेरी लिखना, अब छूटने का कोई प्रश्न नहीं उठता ..............